सूरत. दक्षिण गुजरात का केन्द्र है सूरत. यह अहमदाबाद के बाद गुजरात का सबसे महत्वपूर्ण जिला है. दक्षिण गुजरात की राजनीतिक धुरी होने के साथ-साथ यह सौराष्ट्र की राजनीति को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है. 2012 में हुये विधानसभा चुनाव में सूरत से भाजपा को 16 सीटों में 15 सीट पर जीत मिली थी. सत्तारूढ़ पार्टी को 2002 के बाद से लगातार जीत मिलती रही है. पिछले विधानसभा चुनाव तक पाटीदार-व्यावसायी और उत्तर भारतीय की पसंद भाजपा रही है. बीते दिनों में दक्षिण गुजरात में भाजपा के लिये ‘डैमेज कंट्रोल’ और ‘जेट-पावर’ की तरह काम करने वाले सूरत में हालात तेजी से बदले हैं.
दो साल पहले अगस्त 2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन की पहली रैली सूरत से ही निकली. जानकार बताते हैं कि उस समय रैली का तेवर भाजपा विरोधी नहीं था. लेकिन वक्त के साथ यह सरकार विरोधी और अब भाजपा विरोधी हो चला है.

आरक्षण के मुद्दे पर पटेल-पाटीदार में भाजपा के प्रति नाराजगी
वराछा रोड विधानसभा सीट से भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में 57.3 फीसदी मतों के साथ जीत मिली थी. जबकि मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चुनाव प्रचार के दरम्यान भाजपा नेताओं पर पत्थरबाजी हुई और युवाओं ने कुछ मोहल्लों में भाजपा उम्मीदवारों को घुसने नहीं दिया. वराछा सीट पर दो लाख वोटर हैं. इनमें तीन चौथाई पटेल मतदाता हैं. वराछा के साथ ही सूरत जिले के कामरेज, सूरत उत्तरी और करंज सीट पर पटेल-पाटीदारों की अच्छी संख्या है.
वराछा सीट के पटेल वोटरों में ज्यादातर सौराष्ट्र से हैं. इन्होंने यहां हीरा का कारोबार स्थापित किया है. इनमें कई व्यावसायियों का सौराष्ट्र से पारिवारिक और व्यापारिक संबंध बना हुआ है. यहां के पटेलों की नाराजगी सूरत के साथ-साथ सौराष्ट्र में भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है. वराछा के श्री सरदार पटेल डायमंड मार्केट में 15 साल से हीरे का कारोबार कर रहे भावनगर के परेश भाई कहते हैं, “दिवाली के बाद हम व्यस्त होते थे, इस बार काम नहीं है, जीएसटी और नोटबंदी के बाद अब बिक्री 30 फीसदी हो गया है. लोगों को कारोबार बंद करना पड़ा है और कारीगर की छुट्टी हो गयी है. असर सिर्फ बड़े व्यापारी को नहीं हुआ है.” वहीं, एक अन्य कारोबारी जयेश उम्मीद करते हैं कि सालभर में दिक्कत खत्म हो जायेगी.

हीरा व्यवसायियों के साथ ही भाजपा को कपड़ा व्यवसायियों का भी समर्थन मिलता रहा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां के व्यवसायियों ने पिछले लोकसभा चुनाव में ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे वाले प्रिंटेड साड़ियां कई राज्यों में भिजवाया था.
जीएसटी में सुधार के बाद भी नहीं बदली सेहत
वहीं, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद कपड़ा व्यवसायियों ने विरोध में 25 दिनों तक दुकानें बंद रखी. इस दौरान व्यावसायियों ने सूरत टेक्सटाइल्स जीएसटी संघर्ष समिति के बैनर तले प्रदर्शन भी किया. यह समिति सूरत के टेक्सटाइल्स व्यवसायियों के सबसे बड़े संगठन ‘फेडरेशन ऑफ सूरत टेक्सटाइल्स एसोसिएशन'(फोस्टा) के द्वारा बनाया गया था. सूरत में एक लाख से अधिक दुकानें हैं जिनमें 70 हजार दुकानें फोस्टा से संबद्ध हैं.
फोस्टा के पूर्व अध्यक्ष और संघर्ष समिति के डायरेक्टर सरदार अत्तर सिंह के मुताबिक बिक्री में 80 फीसदी तक की कमी आई है. वे कहते हैं, “जीएसटी में बदलाव के बाद भी हमें कोई फायदा नहीं दिख रहा है, जहां पहले ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी अब दुकानदार खाली बैठे हैं. छोटे शहरों के रिटेलर माल नहींं खरीद रहे हैं.” अत्तर सिंह बताते हैं कि कपड़ों से जुड़े कई उद्योग बंद हो गए हैं और व्यापारी शहर छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हैं.
सूरत का हर घर हीरा और कपड़ा उद्योग से कहीं-न-कही जुड़ा हुआ है. मंदी के बाद से इसका प्रभाव हर जगह दिखता है. पोटला (कपड़े का गठ्ठर) उठाने का काम करने वाले पप्पू कहते हैं कि सालभर से परिवार का तो छोड़िये अपना पेट चलाना मुश्किल हो रहा है.
एक अन्य दुकानदार चतुर सिंह जीएसटी आने के बाद हर बिल के लिये 100 रुपये अतिरिक्त खर्च होने की बात कहते हैं. बताते हैं कि अभी सीए को 1500 रुपये दे रहे हैं, लेकिन बिक्री बढ़ने पर इसका खर्च भी बढ़ेगा.
कई उद्योग बिके
टेक्सटाइल्स उद्योग में 27 से अधिक छोटे-बड़े तरह के कारोबार और उद्योग शामिल हैं. मंदी का असर सभी पर पड़ा है. जरी का उद्योग चलाने वाले रमन चौधरी बताते हैं, “बिक्री घटने से कई उद्योग बंद हुये हैं और बिके भी हैं. जीएसटी के बाद डिमांड 70 फीसदी कम हो गया है, तीन तरह के रेशम पर अलग-अलग जीएसटी है, यह उलझन पैदा करती है.” रमन 1998 में बिहार के एक गांव से सूरत पहुंचे. वे अागे कहते हैं, “भाजपा के शासन में हमें कारोबार करने के लिये बढ़िया माहौल मिला, हम इस बात को नहीं भूल सकते हैं.”
उत्तर भारतीयाें की नाराजगी
सूरत में भाजपा को बागियों से भी चुनौती मिल रही है. भाजपा से निष्काषित नेता अजय चौधरी सूरत के चौउरासी सीट से लड़ रहे हैं. इस सीट पर 66,000 उत्तर प्रदेश और बिहार के वोटर हैं और करीब इतना ही दूसरे राज्यों से हैं. अजय चौधरी बिहार से हैं और इसी नाम पर वोट मांग रहे हैं. उधना सीट पर भी उत्तर भारतीय मजदूरों की बड़ी संख्या है जो चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.
बहरहाल, भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के बड़े नेता यहां लगातार सभाएं कर रहे हैं. अकेले 26 नवंबर को केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, धर्मेंद्र प्रधान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलग-अलग जगहोंं पर सभाएं की.