नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपित डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनको कांगड़ा चाय की पत्तियों को उपहार में दिया था. पूरी दुनिया में उस समय विश्व प्रसिद्द कांगड़ा चाय की चर्चा हुई थी लेकिन इसके बाद भी कांगड़ा चाय बागानों की हालत नहीं बदली. हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय के बागान दिनों-दिन कम होते जा रहे हैं.
रियल स्टेट हड़प रहा चाय बागान
हिमाचल की कांगड़ा चाय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। हिमाचल के चाय किसान रमेश सिंह ठाकुर ने बताया ” पालमपुर और धर्मशाला में चाय के बगानों की संख्या दिन-प्रतिदिन इसलिए घट रही हैं क्योंकि बगान मालिकों को रियल स्टेट से अच्छे दाम मिल रहे हैं. रियल स्टेट मालिक इन चाय के बगानों को मिटाकर बिल्डिंग बनाने में लगे हुए हैं ताकि पैसा कमाया जा सके. ”
उन्होंने बताया कि एक तरफ रियल स्टेट इन बगानों में सिर्फ पैसा कमाने के लिए दिलचस्पी दिखा रही है तो दूसरी तरफ सरकार 110 साल पुरानी सभ्यता के प्रति उदासीन व्यवहार कर रही है. खुद पीएम मोदी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कांगड़ा की चाय उपहार स्वरुप दे चुके हैं इसके बाद भी बगानों को सुरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है.
चाय उत्पादन में दुनिया में दूसरे नंबर पर है भारत
चाय उत्पादन में दुनिया में दूसरे नंबर पर आने वाले भारत में कई चाय बागानों के अस्तित्व के पर खतरा मंडरा रहा है। चाय बोर्ड के अनुसार भारत में जितने में भी चाय बागान हैं उसमें से 18 प्रतिशत की स्थिति बहुत ही दयनीय है. देश के 16 राज्यों में चाय के बागान हैं. असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में देश का 95 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है. चाय बोर्ड के अनुसार पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग चाय दुनिया की सबसे महंगी और खुशबूदार चाय मानी जाती है यहां पर लगभाग 86 बागान हैं, जहा चाय तैयार की जाती है.
चाय उत्पादन में असम देश का सबसे बड़ा राज्य है. तमिलनाडु का नीलगिरि पहाड़ भी चाय उत्पादन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. केरल का मुन्नार हिल स्टेशन भी एक ऐसी जगहहैं जहां बड़ी मात्रा में चाय बागान हैं. हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय भी देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है, लेकिन इसका अस्तित्व भी अब खतरे हैं है.
गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक 1815 में शुरू कराई थी चाय की खेती
भारत में चाय की खेती का श्रेय गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक को जाता है. सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अंग्रेज यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय कबाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे. भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया. इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए.
चाय के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में, कुछ सूखी पत्तियां आकर गिरीं जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया. बस यहीं से शुरू हो गया चाय का सफ़र. ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है. सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है. सन 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया.