मंडी. पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री सुखराम ने भाजपा में शामिल होकर सारे राजनैतिक समीकरणों को बदलकर रख दिया है. सुखराम के भाजपा में जाने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. वहीं कांग्रेस किसी भी नुकसान से साफ इनकार कर रही है. कांग्रेस का मानना है कि सुखराम अहम और वहम के शिकार हो गये हैं. सुखराम के भाजपाई होने के फैसले से कांग्रेस का नुकसान होगा या नहीं, यह समझने के लिये हिमाचल की राजनीति में सुखराम के प्रभाव को जानना जरूरी है.
दरअसल सुखराम को हिमाचल प्रदेश की राजनीति में चाणक्य के नाम से जाना जाता है. कब, किस वक्त, कौन सा पासा फेंकना है, इस बात की पूरी सूझ-बूझ सुखराम को है. मंडी के सदर विधानसभा क्षेत्र पर इकछत्र राज करने वाले सुखराम मंडी जिला और प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी अपना जनाधार रखते हैं.
राजनीति का सफर
1962 से राजनीति में रहने के बाद 2007 में सक्रिय राजनीति से सन्यास ले चुके हैं. साल 1998 में जब सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर ‘हिमाचल विकास कांग्रेस’ के नाम से पार्टी बनायी थी तो उस दौरान पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ा और भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनायी थी.
मंडी जिला की दस सीटों पर सुखराम ने अपने मोहरे चुनावी रण में उतारे थे. इनमें से चार सीटों पर सुखराम के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज करके विधानसभा का रुख किया था. इनमें सदर, बल्ह, धर्मपुर और करसोग विधानसभा क्षेत्र भी शामिल थे.
सुखराम का सुख अब कांग्रेस को नहीं
मंडी जिला के द्रंग, धर्मपुर, बल्ह, करसोग और सिराज विधानसभा क्षेत्रों में भी सुखराम का प्रभाव देखा जा सकता है. जबकि सुंदरनगर, नाचन और जोगिंद्रनगर में भी सुखराम के समर्थक मिल सकते हैं. राजनीति के जानकार मानते हैं कि मंडी जिला के सभी दस सीटों पर सुखराम के कारण भाजपा को लाभ मिल सकता है. सुखराम के अलग होने के बाद कांग्रेस को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है.
सुखराम का अहम और वहम
सुखराम की मानें तो उन्होने मंडी जिला में भाजपा के सभी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने का मन बना लिया है. सुखराम सभी भाजपा प्रत्याशियों को अपने समर्थन का ऐलान कर चुके हैं. वहीं कांग्रेस इसके विपरीत, सुखराम और उनके परिवार पर निशाना साधने में जुटी है. मंडी जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक शर्मा ने कहा कि ‘सुखराम और उनके परिवार को 20 से 25 वर्ष पुरानी बादशाहत याद आ रही है जबकि अब समय बदल चुका है.’
ऐसा नहीं कि सुखराम इस बार के चुनावों में ही प्रचार करने मैदान में जाएंगे. 2007 और 2012 के चुनावों में भी सुखराम कांग्रेस के कई प्रत्याशियों को जीताने के लिये प्रचार कर चुके हैं लेकिन इस बार फर्क सिर्फ इतना है कि सुखराम कांग्रेस प्रत्याशियों को हराने के लिये प्रचार करेंगे.
सुखराम, भाजपा के लिये लाभाकारी रहेंगे या हानिकारक, इसका पता परिणामों के समय ही चल पायेगा.