नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की राज्य सरकार और वन विभाग के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि हजारों एकड़ वन भूमि पर अवैध कब्जा होता रहा और अधिकारी मूक दर्शक बने रहे। अदालत ने इस गंभीर मामले को देखते हुए इसे स्वतः संज्ञान (Suo Motu) के रूप में आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
‘आंखों के सामने लूटी गई हजारों एकड़ वन भूमि’
मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि मामले के तथ्यों से प्रथम दृष्टया यह सामने आता है कि निजी व्यक्तियों द्वारा सुनियोजित तरीके से हजारों एकड़ सरकारी वन भूमि पर कब्जा किया गया, और राज्य प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
पीठ ने टिप्पणी की-
“यह हमारे लिए चौंकाने वाला है कि उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी अपनी आंखों के सामने वन भूमि पर हो रहे कब्जे को रोकने में पूरी तरह विफल रहे।”
जांच समिति गठित करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने:
उत्तराखंड के मुख्य सचिव और
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF)
को निर्देश दिया है कि वे एक जांच समिति (Enquiry Committee) गठित करें और पूरे मामले की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
निजी व्यक्तियों पर सख्त रोक
अंतरिम आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट ने:
विवादित भूमि की बिक्री, हस्तांतरण या किसी भी तरह के तीसरे पक्ष के अधिकार बनाने पर रोक लगा दी है।
किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।
वन विभाग को निर्देश दिया गया है कि आवासीय मकानों को छोड़कर बाकी खाली जमीन पर तुरंत कब्जा लिया जाए।
मामला 2866 एकड़ वन भूमि से जुड़ा
यह मामला 2866 एकड़ भूमि से जुड़ा है, जिसे सरकारी वन भूमि घोषित किया गया था।
इस भूमि का एक हिस्सा कथित तौर पर पशु लोक सेवा समिति (Pashu Lok Seva Samiti), ऋषिकेश को लीज पर दिया गया था।
समिति ने दावा किया कि उसने यह भूमि अपने सदस्यों में बांट दी।
बाद में समिति और उसके सदस्यों के बीच विवाद हुआ, जिसके बाद एक कथित मिलीभगत वाला समझौता डिक्री पारित की गई।
भूमि सरकार को लौटाई गई, फिर भी कब्जा
रिकॉर्ड के अनुसार:
वर्ष 1984 में समिति ने 594 एकड़ भूमि वन विभाग को वापस सौंप दी, और यह आदेश अंतिम हो गया।
इसके बावजूद, कुछ निजी व्यक्तियों ने 2001 में भूमि पर कब्जा होने का दावा किया, जिससे बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे का संदेह गहराया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने माना कि यह मामला केवल भूमि विवाद नहीं बल्कि राज्य प्रशासन की गंभीर लापरवाही और वन संरक्षण कानूनों के उल्लंघन का है। इसी आधार पर अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सख्त आदेश पारित किए।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश वन संरक्षण और सरकारी भूमि की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। अदालत की सख्ती से न केवल उत्तराखंड बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी स्पष्ट संदेश गया है कि वन भूमि पर अवैध कब्जे को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
