नई दिल्ली. 2025 के Bihar Assembly Elections से पहले देश की सियासत में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। INDIA Bloc ने Election Commission of India (ECI) पर आरोप लगाया है कि वह Voter List Special Intensive Revision (SIR) के नाम पर राज्य में ‘Votebandi’ की कोशिश कर रहा है। 2 जुलाई को आयोग से हुई मुलाकात के बाद INDIA Bloc के नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि मौजूदा फॉर्मेट में मतदाता सूची संशोधन जारी रहा, तो वे statewide protests करेंगे।
‘प्रवासी मजदूरों और गरीबों को किया जा रहा है निशाना’
विपक्षी गठबंधन का कहना है कि इस प्रक्रिया के जरिए migrant workers, गरीब और हाशिए पर मौजूद तबकों को voter rights से वंचित किया जा रहा है। विपक्ष के अनुसार, चुनाव आयोग ने खुद स्वीकार किया कि राज्य के 20% मतदाता प्रवासी हैं, और अगर उन्हें “ordinary residents” के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया तो उन्हें सूची से बाहर किया जा सकता है।
विपक्ष बोला: संशोधन का समय और तरीका दोनों संदिग्ध
Congress, RJD, CPI, CPM, SP, NCP-SP और CPI(ML) Liberation सहित INDIA Bloc के 11 दलों ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात कर गहरी आपत्ति जताई। नेताओं ने कहा कि जब बिहार जैसे बड़े राज्य में 8 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं, तो महज 1-2 महीने में इतनी बड़ी प्रक्रिया को अंजाम देना चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।
बैठक में दिखा तनाव, कांग्रेस ने जताया विरोध
चुनाव आयोग और INDIA Bloc के बीच मीटिंग से पहले ही माहौल तनावपूर्ण हो गया था। शुरुआत में आयोग ने सिर्फ तीन दलों को बुलाया था—RJD, CPI(ML) और CPM। जब मीटिंग शुरू हुई तो “2 प्रतिनिधि प्रति पार्टी” का नियम लागू किया गया, जिससे कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं को बाहर कर दिया गया। कांग्रेस ने इस फैसले का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया।
‘सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे SC/ST और युवाओं के वोट’
कांग्रेस नेता Abhishek Manu Singhvi ने मीडिया को बताया कि SC/ST, गरीब और प्रवासी वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि कई लोग अपने या अपने माता-पिता के birth certificate नहीं दिखा पाएंगे, जबकि यही दस्तावेज सत्यापन का आधार बनाए गए हैं।
‘चुनाव के वक्त नाम हटे तो क्या उपाय बचता है?’
सिंघवी ने सवाल उठाया कि अगर किसी मतदाता का नाम हट गया, तो उसके पास नाम हटाने को चुनौती देने का मौका नहीं बचेगा, क्योंकि तब तक चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी होगी। अदालतें चुनाव के दौरान इस तरह के मामलों की सुनवाई नहीं करतीं।
क्या 2003 के बाद हुए सभी चुनाव अमान्य थे?
उन्होंने यह भी पूछा कि अगर पिछले revision 2003 में हुआ था और तब से 4-5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या अब हम मानें कि वो सारे चुनाव गलत आधार पर हुए थे?
लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन?
सिंघवी ने कहा, “हमने 1950 में universal adult franchise लागू किया था, जो कई Western democracies से आगे था। अगर अब हम लाखों लोगों के वोटिंग राइट्स पर सवाल उठा रहे हैं, तो यह लोकतंत्र के मूल ढांचे पर चोट है।”
उन्होंने आगाह किया कि voter list से किसी का नाम गलत तरीके से हटाना या जोड़ना, electoral integrity को बिगाड़ सकता है।