भारत में ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’(आरटीई) साल 2010 में लागू हुआ. आरटीई कानून के लागू होने के बाद 14 साल से कम के भारतीय नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार प्राप्त हुआ. इसके लिए भारतीय गणतंत्र के नागरिकों को 6 दशकों का लंबा इंतजार करना पड़ा. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर संविधान निर्माण के समय ही शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाना चाहते थे. लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाये. शिक्षा, मौलिक अधिकार तो अब भी नहीं बन पाया है. लेकिन जितना ही मिला वो ‘प्राइवेटाइजेशन’ के जमाने में कम नहींं है.

आरटीई को लागू करते हुए सात साल पहले जो सपने संसद में देखे गए थे, वह अब भी बहुत दूर है. ‘असर’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां 2014 में 48.1 फीसदी पांचवी के छात्र दूसरी कक्षा की किताब पढ़ पाते थे. वहीं, दो सालों में, साल 2016 में यह घटकर 47.8 फीसदी रह गया.

इसकी एक बड़ी वजह सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और अकुशल शिक्षक भी हैं. आरटीई के लागू होने के पांच सालों के भीतर सभी अप्रशिक्षित शिक्षकों को आवश्यक प्रशिक्षण देना था. जबकि कानून लागू होने के 7 साल बीत जाने के बाद भी 10 लाख अकुशल शिक्षक देश का भविष्य बना रहे हैं. कई राज्यों के स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या आरटीई लागू होने के बाद बढ़ती गई है. इन राज्यों में शिक्षकों की भर्ती तो हुईं लेकिन उनका प्रशिक्षण नहीं हो पाया.
मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावेडकर के मुताबिक सरकारी स्कूलों में अब भी ढ़ाई लाख शिक्षक नियमों के मुताबिक प्रशिक्षित नहीं हैं. जबकि प्राइवेट स्कूलों में अब भी 5 से 6 लाख से अधिक अप्रशिक्षित शिक्षक हैं.
वहीं, 12वीं पंचवर्षीय योजना पर योजना आयोग के द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अब भी 8 लाख से अधिक अप्रशिक्षित शिक्षक स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. इनमें चार राज्यों, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में अप्रशिक्षित शिक्षकों का प्रतिशत 72 फीसदी के करीब है. इसके अलावे एक बड़ी संख्या छोटे शहरों, गांव और कस्बों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की भी है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में अब भी 25 फीसदी से अधिक शिक्षकों के पास प्रशिक्षण नहीं है.

शिक्षा, राज्य और केन्द्र की साझी जिम्मेदारी है. नीति और बड़े बदलाव की जिम्मेवारी केन्द्र सरकार की है जबकी राज्य की जिम्मेवारी नीतियों को लागू करवाना है. कुछ बड़े राज्यों को छोड़ दें तो ज्यादातर राज्यों में अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या एक बड़ी समस्या है. अंग्रेजी
अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक मध्यप्रदेश में 68 फीसदी और झारखंड में तो 70 फीसदी शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हैं.
कई राज्यों में आरटीई लागू होने के बाद प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या तेजी के साथ घटी है.
2006-07 में बिहार में जहां 62 फीसदी शिक्षक प्रशिक्षित थे वहीं 2014-15 में यह घटकर 43 फीसदी रह गयी. यही हाल पश्चिम बंगाल का भी है यहां प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या 75 फीसदी से घटकर 2014 तक 49 फीसदी रह गयी है.
शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के साथ-साथ राज्यों में जिला और प्रखंड स्तर तक संस्थान बने हैं. इनका काम स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों को प्रशिक्षण देना है.
राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं में पहला नाम राष्ट्रीय शिक्षण अनुसंंधान परिषद यानी एनसीईआरटी का आता है. यह संस्था अपने अन्य 6 क्षेत्रीय शाखाओं के माध्यम से पॉलिसी और पाठ्यक्रम बनाने के साथ ही ऐसे प्रशिक्षित शिक्षक तैयार करती हैं जो अन्य शिक्षकों को ट्रेनिंग दे सके. इसके अलावा NUEPA जैसी अन्य स्वायत्त संस्थाएं राष्ट्रीय स्तर पर प्लान तैयारी करती हैं.
इसके अलावा सभी राज्यों में राज्य शैक्षिक शोध और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) भी हैं जिनका मुख्य जिम्मेवारी शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण माड्युल बनाना है. इसके साथ ही CTEs, IASEs जैसी संस्थाएं भी हैं. इसके अलावा जिले स्तर पर शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए DIETs, प्रखंड स्तर पर प्रशिक्षण के लिए BRCs व CRCs जैसी संस्थाएं हैं.
शिक्षकों के कौशल विकास के लिए इतनी सारी संस्थाएं बनाने के बावजूद अब भी स्कूल ‘प्रोफेशनल शिक्षकों’ की कमी से जूझ रहे हैं.
आरटीआई में पहले तय किया गया था कि साल के भीतर सभी शिक्षकों को प्रशिक्षित कर दिया जाएगा. पिछले दिनों आरटीई में बदलाव के बाद अब उसे 31 मार्च 2019 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इस बदलाव से अप्रशिक्षित शिक्षकों को स्कूलों में पढ़ाते हुए डिग्री हासिल करने का रास्ता साफ हो गया है.
नए प्रावधान में मार्च 31, 2019 तक सभी शिक्षकों को प्रशिक्षण डिग्री प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके लिए NIOS को नोडल एजेंसी बनाया गया है. NIOS दो सालों का बैचलर इन एलिमेन्ट्री एजुकेशन (B.El. Ed) या डिप्लोमा इन एलिमेन्ट्री एजुकेशन (D. El.) की डिग्री देगी. यह डिग्री सभी शिक्षकों के लिए अनिवार्य है चाहे वे रिटायर्ड ही क्यों न होने वाले हों.
कोर्स के लिए पहले साल 4500 और 6,000 रुपया देना होगा. NIOS सिर्फ परीक्षा आयोजित करने और प्रमाण-पत्र देगी. एक बार फिर इस योजना को लागू करवाने की जिम्मेवारी राज्य सरकार पर आ गयी है. दो सालों में लक्ष्य पाने के लिए पाठ्य पुस्तकों और प्रैक्टिकल को पूरा करवाने के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं को कमर कसनी होगी. वैसे केन्द्र सरकार 32 डीटीएच चैनल और स्वयम(ऑनलाइन) के माध्यम से किताबें और क्लास रूम मुफ्त में उपलब्ध करवाने की बात कह रही है.
देखना यह होगा कि दुनिया में सबसे बड़ी सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था वाले देशों में से एक भारत में 2 सालों में क्या बदलाव आ पाता है?