नई दिल्ली. भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble of Indian Constitution) को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि भारत का संविधान “परिवर्तनशील नहीं” है, लेकिन इसमें 1976 में एक बार बदलाव किया गया था। उन्होंने 42वें संविधान संशोधन (42nd Constitutional Amendment) का ज़िक्र करते हुए बताया कि उसी दौरान “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” और “राष्ट्रीय अखंडता” जैसे शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे। उनका कहना था कि हमें इस बदलाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
धनखड़ की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” (Secular) और “समाजवादी” (Socialist) शब्दों की समीक्षा की मांग की है। संघ महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ये शब्द भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल (Emergency 1975-77) के दौरान जबरन जोड़ा गया था। RSS से जुड़े एक लेख में भी यह स्पष्ट किया गया है कि इस मांग का उद्देश्य संविधान को “तहस-नहस” करना नहीं है, बल्कि उसकी original spirit को पुनः बहाल करना है जो Emergency Policies की विकृतियों से प्रभावित हो गई थी।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी
इस बयान के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने होसबाले की टिप्पणी को “राजनीतिक अवसरवाद” और “संविधान की आत्मा पर हमला” करार दिया है। कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि RSS ने कभी इमरजेंसी का विरोध नहीं किया, बल्कि इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर समर्थन दिया था।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भी RSS की इस पहल का परोक्ष समर्थन किया और कहा कि हर तार्किक नागरिक” इस समीक्षा का समर्थन करेगा क्योंकि यह शब्द Ambedkar द्वारा लिखे गए मूल दस्तावेज का हिस्सा नहीं थे।
Background के तौर पर, भारत के संविधान की मूल प्रस्तावना 26 नवंबर 1949 को पारित की गई थी। लेकिन 1976 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, 42वें संशोधन के तहत इसमें Socialist, Secular” और Integrity शब्द जोड़े गए, जिसे लेकर तब से लेकर अब तक ideological और political विवाद चलता रहा है।