नई दिल्ली. विवादास्पद वक्फ संशोधन कानून 2025 (Waqf Amendment Act 2025) पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिनों तक चली अहम बहस के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह मामला न सिर्फ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom of Muslims) से जुड़ा है बल्कि इसमें संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 पर भी सवाल उठाए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को ‘भेदभावपूर्ण’ बताते हुए इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, वहीं केंद्र सरकार ने इसे शरिया सिद्धांतों के अनुरूप और जनहित में बताया है।
क्या है मामला?
Waqf Amendment Act 2025 के तहत वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए वक्फ करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 वर्षों से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम (Practicing Muslim for 5 years) होना जरूरी बताया गया है। साथ ही अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ पर पाबंदी लगाई गई है।
तीन अहम मुद्दे जिन पर कोर्ट में चली बहस
1. 5 साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम की शर्त
केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शरिया कानून के अनुसार, मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ लेने के लिए मुस्लिम पहचान देना पड़ता है। इस कानून में बस इसे पांच साल की नियमित धार्मिक प्रैक्टिस से जोड़ दिया गया है।
लेकिन वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा कि किसी और धर्म के लिए ऐसी शर्त नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का अधिकार) का उल्लंघन है।
2. जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ पर रोक
सरकार का तर्क है कि अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों को सांस्कृतिक और भूमि अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह रोक लगाई गई है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इससे इन क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिमों के वक्फ का संवैधानिक अधिकार समाप्त हो जाता है।
वक्फ बाई यूजर की बाध्यता और रजिस्ट्रेशन
कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ बाई यूजर (यानी लंबे समय से उपयोग में आ रही संपत्तियों को वक्फ घोषित करना) विवादास्पद है क्योंकि इससे दूसरों की संपत्ति पर दावा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि 100 साल से वक्फ का पंजीकरण अनिवार्य रहा है, लेकिन अब इसे सख्ती से लागू कर दिया गया है, जिससे छोटे वक्फ भी विवादों में आ सकते हैं।
क्या कहा कोर्ट ने?
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सुनवाई कर रही पीठ ने कई सवाल उठाए। जस्टिस गवई ने पूछा कि यदि जनजातीय जमीन कानूनन उसी व्यक्ति के नाम पर ही रह सकती है, तो फिर वक्फ पर रोक क्यों?
जस्टिस ए.जी. मसीह ने भी पूछा कि “इस्लाम तो इस्लाम है, सांस्कृतिक प्रथाएं अलग हो सकती हैं, लेकिन धर्म एक ही है।”
तमिलनाडु केस ने खड़ा किया नया विवाद
तमिलनाडु के एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि एक पूरे गांव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया, जिसमें 5000 साल पुराना चोल वंश कालीन मंदिर भी शामिल है। कोर्ट ने इस बिंदु पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
सरकार की सफाई: ‘वक्फ पर रोक नहीं, सुधार है’
सरकार ने दावा किया कि नया कानून अनुचित कब्जे (Adverse Possession) को रोकने, पारदर्शिता बढ़ाने और भूमि विवादों को खत्म करने के लिए लाया गया है। अब कोई वक्फ तभी मान्य होगा जब वह कानूनी रूप से पंजीकृत होगा और संपत्ति वास्तव में दानकर्ता की हो।
क्या रुक सकता है वक्फ कानून का रास्ता?
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोर्ट धार्मिक स्वतंत्रता बनाम भूमि सुरक्षा के बीच संतुलन बैठा पाता है या नहीं। फिलहाल, Waqf Amendment Act 2025 देश की कानूनी और राजनीतिक बहस के केंद्र में बना हुआ है।
