सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फ़ैसला सुनाते हुए उस पर 6 महीनों की रोक लगा दी है और सरकार को कानून बनाने के लिए कहा है.
जब भी तीन तलाक की बात आती है, तो लोग तीन तलाक को बैन करने की बात करते हैं. लेकिन हमें यहाँ ये समझना ज़रूरी है कि हमें ‘तीन तलाक’ को बंद करना है या फिर जिस तरह से वर्तमान समय में तीन तलाक देने के मामले सामने आए हैं, उन तरीकों को.
अगर देखा जाए तो, जो मुस्लिम महिलाएं इससे पीड़ित हैं उन्हें तीन तलाक से परेशानी नहीं है. बल्कि उन्हें जिस तरह से तलाक़ दिया गया उस तरीक़े से आपत्ति है. कुछ ऐसे ही मामले हुए हैं जिसमे तलाक़ ग़लत तरीके से दिया गया.
दरअसल तलाक की प्रक्रिया यदि चरणबद्ध तरीके से तीन बार में हो तो ‘तीन तलाक’ पूरी तरह से न्यायसम्मत हो सकता है। लेकिन यहां मामला एक ही बार में तीन बार यह शब्द दोहरा दिये जाने के बाद झटके से खत्म हुए रिश्ते से है जो कि पूरी तरह से एकतरफा मामला है. पुरुष के इस एकतरफा फैसले को पलटने के लिये मुस्लिम महिला के पास सुनवाई के लिये कोई जगह नहीं होती थी. जिसकी वजह से यह तरीका महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता था.
उत्तराखंड की सायरा बानों को उनके पति ने तीन बार तलाक़ लिखकर भेज दिया. जिसके बाद उनका तलाक़ हो गया. इसी तरह पश्चिम बंगाल की इशरत जहाँ को उनके पति ने फ़ोन पर ही तीन बार तलाक बोलकर दूसरी महिला से शादी कर ली. मतलब साफ़ है कि तीन तलाक़ को हथियार बनाकर आसानी से तलाक़ ले लिया गया. यानि असल परेशानी तीन तलाक नही है, बल्कि तलाक़ का तरीका है. क्योकि तलाक़ तीन बार बोला जाए या एक बार अगर वह इस तरह से दिया जाएगा तो यह कतई वाजि़ब नही.
तीन तलाक़ पर नई दिल्ली के अशोक नगर इलाक़े से एक मदरसे के मौलाना जुनैद बताते है कि इस्लाम में इस तरह से एक बार में तीन तलाक़ देना गुनाह (पाप) है. इस्लाम में तीन तलाक़ बोलने के लिए लंबा समय रखा गया है. ऐसा इसलिये कि इस बीच पति-पत्नी के ख़याल बदल सकते हैं और उनमे सुलह की गुंजाइश बने तो ये रिश्ता टूटने से बच सके.
उन्होंने कहा कि तीन तलाक़ बेहतरीन चीज़ है. इस्लाम यह इजाज़त देता है कि किसी पति-पत्नी के बीच नही बन रही तो दोनों अपनी अलग जिंदगी जीने के लिए आज़ाद है. वह तलाक के ज़रिए इस ज़बरदस्ती के रिश्ते को निभाने से छुटकारा पा जाते हैं. लेकिन तलाक़ का जो तरीका अपनाया जा रहा है वह ग़लत है.
उनका मानना था कि इस तरीके पर रोक लगनी चाहिए और ऐसा करने वालों को सजा के दायरे में लाना चाहिए. यानी अगर देखा जाए तो जिस तरह से इस मसले को सियासी पेचीदगी से पेश किया जाता है उससे यह और भी उलझ जाता है. अगर तीन तलाक़ के तरीक़े पर सख्ती की जाए तो शायद ही इसका कोई विरोध करे.
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