नई दिल्ली. देश में Electronic Voting Machine (EVM) का उपयोग अब आम बात हो चुका है। 2004 से देशभर में Lok Sabha और State Assembly elections में EVM के माध्यम से वोटिंग की जा रही है। अब तक 5 लोकसभा और 130 से अधिक विधानसभा चुनावों में इसका सफल प्रयोग हो चुका है। फिर भी राष्ट्रपति (President), उपराष्ट्रपति (Vice President), राज्यसभा (Rajya Sabha) और विधान परिषद (Legislative Council) चुनावों में EVM का उपयोग नहीं हो रहा। इसका मुख्य कारण यह है कि EVM को सीधे चुनाव (direct election) के लिए डिजाइन किया गया है, जहाँ मतदाता को केवल एक उम्मीदवार के लिए वोट देना होता है। लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव proportional representation और single transferable vote प्रणाली पर आधारित हैं, जिसमें मतदाता एक से अधिक उम्मीदवारों को प्राथमिकता क्रम में वोट देता है।
Single transferable vote प्रणाली में मतदाता ballot paper पर 1, 2, 3 जैसी प्राथमिकता अंकित करता है। पहले राउंड में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। यदि पहली प्राथमिकता में बराबरी हो तो दूसरी प्राथमिकता के वोटों की गिनती की जाती है। इस प्रक्रिया के लिए ऐसी voting system चाहिए जो प्राथमिकताओं को रिकॉर्ड कर सके, जबकि EVM केवल एक उम्मीदवार को चुनने के लिए बनी है।
भारत में EVM की शुरुआत 1977 में हुई थी
भारत में EVM की शुरुआत 1977 में हुई थी। तब हैदराबाद स्थित Electronics Corporation of India Limited (ECIL) को इसका डिज़ाइन बनाने की जिम्मेदारी दी गई। 1979 में इसका पहला प्रोटोटाइप तैयार हुआ और 1982 में केरल विधानसभा चुनाव में इसका उपयोग हुआ। लेकिन उस समय कानूनी मंजूरी नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद 1989 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन कर इसे वैधानिक रूप दिया गया। इसके बावजूद आम सहमति बनने में समय लगा और 1998 में इसका प्रयोग दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में शुरू हुआ। अंततः 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल के चुनाव पूरी तरह EVM से कराए गए।
अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में EVM के उपयोग के लिए नई तकनीक की आवश्यकता होगी, क्योंकि ये चुनाव aggregated vote से नहीं बल्कि प्राथमिकता आधारित वोटिंग से होते हैं। इसलिए अभी तक इन चुनावों में पारंपरिक बैलेट पेपर का उपयोग किया जा रहा है।
इस प्रकार, जहां एक ओर EVM ने चुनाव प्रक्रिया को आसान, तेज़ और पारदर्शी बनाया है, वहीं इसकी संरचना ऐसी नहीं है कि वह प्राथमिकता आधारित चुनावों में काम कर सके। इसलिए भारत में आज भी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में पारंपरिक प्रणाली का ही पालन किया जा रहा है।