India US Trade Talks 2025: जब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका और चीन आपसी तनाव कम कर व्यापार टैरिफ पर समझौते की दिशा में आगे बढ़ रही हैं, ऐसे वक्त में भारत ने भी रणनीतिक रूप से अपनी व्यापारिक सक्रियता बढ़ा दी है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अगले सप्ताह एक हाई-लेवल व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ अमेरिका यात्रा पर जा रहे हैं, जिसका मकसद है एक इंटरिम ट्रेड डील को अंतिम रूप देना।
अमेरिका-चीन सौदे के बीच भारत की चाल
हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच हुए surprise tariff deal से जहां वैश्विक बाजारों में उत्साह है, वहीं भारत के लिए यह “wake-up call” भी है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “चीन पर अब भी काफी टैरिफ लागू हैं, लेकिन भारत की रणनीति अब अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और अमेरिका के साथ एक ठोस व्यापारिक आधार तैयार करने की है।”
इस व्यापार वार्ता को US-India Strategic Trade Dialogue का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें दोनों देश टैरिफ, डिजिटल डेटा, टेक्सटाइल, कृषि और ऑटोमोबाइल जैसे मुद्दों पर फोकस करेंगे।
WTO में टैरिफ विवाद और भारत की जवाबी नीति
अमेरिका द्वारा भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर लगाए गए 25% टैरिफ को लेकर भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। भारत WTO में जवाबी शिकायत दर्ज कर सकता है और अपनी retaliation rights सुरक्षित रखने की दिशा में कदम उठा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि अगर भारत 90 दिनों के भीतर शिकायत नहीं करता, तो उसका जवाबी कार्रवाई का अधिकार समाप्त हो सकता है। भारत की यह आक्रामक नीति दर्शाती है कि वह सिर्फ वार्ता तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि रणनीतिक रूप से legal options भी एक्टिव कर रहा है।
$5 बिलियन निर्यात प्रभावित, स्टील उद्योग में चिंता
भारतीय इस्पात निर्यातकों के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ की वजह से भारत का लगभग 5 अरब डॉलर का स्टील निर्यात प्रभावित हुआ है। ऐसे में व्यापार वार्ता के साथ-साथ टैरिफ रिलीफ की मांग भी एजेंडे में शीर्ष पर है।
ट्रम्प का दावा, जयशंकर का जवाब
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत ने “अमेरिका पर सभी टैरिफ हटाने की पेशकश की है”। लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि “कोई भी व्यापार सौदा तभी होगा जब वह दोनों पक्षों के लिए लाभकारी हो।”
उन्होंने कहा कि व्यापार किसी भी एकतरफा समझौते का नाम नहीं है, यह परस्पर लाभ और सामर्थ्य का संतुलन होना चाहिए।”
डिजिटल डेटा: नया टकराव का मैदान
Data localisation policy India vs USA: अमेरिका चाहता है कि भारत अपने सख्त डेटा लोकलाइजेशन कानूनों में ढील दे, ताकि अमेरिकी कंपनियों को डेटा की अधिक पहुंच मिल सके। जबकि भारत का मानना है कि डिजिटल संप्रभुता एक “non-negotiable” सिद्धांत है। ट्रंप प्रशासन के दौरान यह एक बड़ा विवाद रहा है और अब भी वार्ता का अहम मुद्दा है।
क्या भारत अमेरिका से आगे निकलने की होड़ में पिछड़ रहा है?
विश्लेषकों का मानना है कि “चीन-प्लस-वन” रणनीति के तहत भारत को अमेरिका का भरोसेमंद साझेदार बनने का मौका मिला था, लेकिन बीजिंग ने वाशिंगटन से तेजी से सौदा कर यह मौका थोड़ा कम कर दिया है। अब भारत के लिए यही समय है जब वह अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को मज़बूत करके अपनी रणनीतिक स्थिति को पुनः स्थापित कर सके।