नई दिल्ली. उत्तरकाशी जिले का धराली कस्बा फिर एक बार प्रकृति की क्रूरता का शिकार बन गया है। 5 अगस्त 2025 की रात, जब स्थानीय लोग चैन की नींद सो रहे थे, तभी खीरगंगा नाले से आए भीषण पानी और मलबे ने कुछ ही पलों में सब कुछ तबाह कर दिया। होटल, दुकानें, वाहन और कई रिहायशी इमारतें पलक झपकते ही धराशायी हो गईं।
50 से ज्यादा लोगों के बहने की आशंका
अधिकारिक आंकड़े भले साफ नहीं हुए हों, लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार, 50 से अधिक लोग बह चुके हैं या लापता हैं। गंगोत्री धाम से करीब 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाला धराली यात्रा मार्ग का अहम पड़ाव है। ऐसे में वहां लगातार लोगों की आवाजाही रहती है। अचानक आई इस आपदा ने किसी को संभलने तक का वक्त नहीं दिया।
उत्तरकाशी की 10 बड़ी आपदाएं: 1835 से 2025 तक
उत्तरकाशी की धरती ने लगातार प्राकृतिक कहर झेला है। नीचे 190 सालों की सबसे बड़ी 10 आपदाएं देखिए:
तारीख / वर्ष | घटना / स्थान | प्रभाव / नुकसान |
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1835 | खिरो गार्ड | पहली बड़ी फ्लैश फ्लड, मलबे से कई गांव बहे |
6-10 अगस्त 1978 | कोयलागांव | कोटिंग ब्रिज बहा, 6 मौतें |
20 सितम्बर 2003 | उत्तरकाशी शहर | भू-स्खलन से बाजार और संपत्ति तबाह |
13 अगस्त 2010 | भटवाड़ी | जमीन धंसी, 50 मकान जमींदोज |
3-6 अगस्त 2012 | उसरी गंगा व भागीरथी | 35 मौतें, 2300 परिवार प्रभावित |
15-16 जून 2013 | उत्तरकाशी, हर्षिल, बड़कोट | 51 मौतें, 14 लापता, 70 गांव प्रभावित |
18-19 अगस्त 2019 | मोरी तहसील | 10 मौतें, 1900 परिवार प्रभावित |
18 अगस्त 2021 | स्वलाड़, केदारगांव | 10 मकान ढहे, कई घायल |
12 अगस्त 2023 | गंगोत्री हाईवे | सड़कें मलबे में, हाईवे बंद |
31 जुलाई 2024 | धराली | भूस्खलन, 10 मौतें, दर्जनों वाहन बह गए |
5 अगस्त 2025 | धराली | बादल फटने से फ्लैश फ्लड, 50 से अधिक लापता |
क्यों आती हैं ज़्यादातर आपदाएं जुलाई-अगस्त में?
मॉनसून का चरम प्रभाव: जुलाई-अगस्त में सबसे ज़्यादा बारिश होती है।
संकरी घाटियां: उत्तरकाशी में घाटियां बहुत संकरी हैं, जिससे पानी और मलबा तेजी से नीचे बहता है।
ग्लेशियर मेल्टिंग + भारी वर्षा: पानी के साथ ऊपरी क्षेत्र का जमा मलबा एकसाथ बहकर तबाही करता है।
भूविज्ञानी डॉ. विपिन कुमार के अनुसार, धराली की बाढ़ में पानी की रफ्तार लगभग 15 मीटर/सेकेंड और मलबे का दबाव 250 किलोपास्कल था। इतनी ताकत से कोई भी निर्माण टिक नहीं सकता।
धराली में तबाही का दृश्य: ताश के पत्तों जैसे ढहे होटल और मकान
बाढ़ इतनी जबरदस्त थी कि तीन-चार मंजिला इमारतें भी पल में मलबा बन गईं। खीरगंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने से दोनों दिशाओं में पानी बहा—एक धार धराली की ओर और दूसरी सुक्की गांव की ओर।
आपदा प्रबंधन सचिव विनोद सुमन ने बताया कि राज्यभर में सड़कें बंद हो गईं, जिससे रेस्क्यू में बड़ी बाधा आई। NDRF की टीमों ने जान जोखिम में डालकर राहत कार्य शुरू किया।
क्या समाधान है?
स्थायी पुनर्वास नीति: खतरे वाले गांवों को स्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर बसाना।
अर्ली वॉर्निंग सिस्टम: बादल फटने और लैंडस्लाइड अलर्ट की सटीक व्यवस्था।
स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर का मजबूतीकरण
जनजागरूकता और आपदा प्रबंधन ट्रेनिंग