परागपुर. करीब 20 साल पहले धरोहर गांव घोषित किए गये परागपुर में धरोहरें सुरक्षित नहीं हैं. आलम यह है कि जिन प्राचीन हवेलियों, इमारतों व तालाब की वजह से इस गांव को धरोहर गांव का दर्जा मिला था, वही अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रहे हैं. हालांकि धरोहर गांव बनने के बाद सरकार ने परागपुर गांव के उत्थान के लिए 50 लाख देने की घोषणा की थी. लेकिन वह पैसा कहां खर्च हुआ किसी को नहीं पता.
मौजूदा समय में परागपुर गांव की तो हालत यह है कि 9 दिसंबर 1997 को धरोहर गांव घोषित होने से पहले जो सुविधाएं उपलब्ध थी आज उनका भी नामोनिशान नहीं है. परागपुर को धरोहर गांव का दर्जा तो सरकार ने दे दिया मगर अफसोस, उसके विकास पर ध्यान नहीं दिया गया.
आज भी धरोहर गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. सरकार ने परागपुर को धरोहर गांव का दर्जा तो दिया लेकिन सुविधाएं कागजों पर ही सिमटी रहीं.
परागपुर को प्रदेश सरकार ने 9 दिसंबर 1997 को धरोहर गांव का दर्जा दिया था. इसी के साथ धरोहर गांव बनते ही इसे देश का प्रथम धरोहर गांव बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ. पर्यटन विभाग के अनुसार वर्ष 1991 की पर्यटन नीति के तहत परागपुर गांव का चयन हेरिटेज विलेज के रूप में किया गया था. नीति के आधार पर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर जैसे कि पुराने किले, महलों, हवेलियों तथा अन्य सुंदर भवन की मरम्मत के बाद पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना था.
पर्यटन विभाग का कहना है कि परागपुर में पुराने किले, महल जैसे सांस्कृतिक धरोहर होने की वजह से गांव को हेरिटेज विलेज के रूप में चयन किया गया,
यहां कि प्राचीन हवेलियां, पुराने भवनों में अधिकतर भवन जर्जर हालत में हैं. सभी हवेलियां व भवन निजी कब्जे में है.
गांव के बीचोबीच लगभग 200 वर्ष पुराना एक तालाब है. तालाब को ‘सिटी हार्ट’ नाम से जाना जाता है. यह तालाब अपने आप में सौंदर्यीकरण का प्रतीक है. तालाब की मरम्मत परागपुर की स्थानीय संस्था ‘नहर कमेटी’ के द्वारा होने के बाद इसकी रौनक एकबार फिर वापस आ गई है.
वहीं, पर्यटन विभाग के अनुसार इस गांव के उत्थान के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया था. यह कमेटी खर्चे का हिसाब-किताब रखती है. परागपुर के विकास के लिए सरकार की तरफ से ₹50 लाख की ग्रांट तो जरूर मंजूर हुई थी परंतु इसे कहां-कहां खर्च किया गया इसकी जानकारी न तो प्रशासन को है और ना ही यहां के लोगों को.
गांव के लोग निराश हैं क्योंकि हेरिटेज विलेज बनने के बाद न तो यहां का व्यापार बढ़ा और ना ही कोई रोजगार के साधन पैदा हुए हैं.
ग्रामीण बताते हैं कि हेरिटेज विलेज बनने से पहले यहां पर सफाई, स्ट्रीट लाइटें व अन्य कई सुविधाएं थी. लेकिन धरोहर गांव घोषित होने के बाद गांव से ये सुविधाएं खत्म हो गयीं. ग्रामीणों के अनुसार प्रागपुर के हेरिटेज विलेज बनने से केवल चंद लोगों को फायदा हुआ है. बहरहाल, धरोहर गांव का दर्जा मिले लगभग 20 वर्ष बीत चुके हैं तब से लेकर आज तक सिर्फ एक म्यूजियम भवन, सुलभ इंटरनेशनल द्वारा शुलभ शौचालय का निर्माण किया गया है.