नई दिल्ली. आज यानि नौ फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन भारत रत्न सम्मानों की ओर घोषणा की. एक्स (पहले ट्विटर) पर तीन अलग-अलग पोस्ट करते हुए पीएम मोदी ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री पामुलपर्थी वेंकट नरसिम्हा राव (पीवी नरसिम्हा राव), चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान किया. लेकिन आज दोपहर में जब से इन सम्मानों का ऐलान किया गया है तब से सबसे ज्यादा अगर किसी नाम की चर्चा हो रही है तो वो हैं कांग्रेस के बड़े नेताओं में रहे पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (P V Narasimha Rao).
देश के इतिहास में पहली बार पांच भारत रत्न एक ही साल में
इतिहास मे यह पहला मौका है जब एक साल में पांच भारत रत्न सम्मान का ऐलान किया गया है इससे पहले भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं अपनी तमाम उम्र सामाजिक न्याय के लिए लगे रहे कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया जा चूका है.
आंध्र प्रदेश की 25 और तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों को साधने की कोशिश
2019 में देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने के ये दूसरा मौका है जब भाजपा ने एक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है. आज लिए गए फैसले के पिछे एक बड़ा राजनीतिक संदेश ये है कि भाजपा कांग्रेस के नेताओं का भी सम्मान करती है और इसका असर उसे 2024 के लोकसभा के चुनाव में भी देखने को मिलेगा. इसके साथ ही इस फैसले के जरिए भाजपा आंध्र प्रदेश की 25 और तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों को साधने की कोशिश करेगी.
कांग्रेस पर और तेज होंगे भाजपा के वार
इस फैसले से भाजपा गांधी परिवार पर निशाना साधने के मौके के अलावा राव के गृह राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश भी करेगी. इससे पहले भी पीएम मोदी कई बार कांग्रेस और गांधी परिवार पर राव को अपमानित करने का आरोप लगा चुके हैं.
कई किताबों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि राव और सोनिया गांधी के बीच कभी नहीं बनी खासकर उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद जिसके चलते भी उन्हें कांग्रेस में वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे. इसके पीछे सबसे बड़ा जो तर्क दिया जाता है वो ये है कि दिसंबर 2004 में जब राव का निधन हुआ था तो उनके पार्थिव शरीर को दल के कार्यालय में भी नहीं रखने दिया गया था. हालांकि यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि जरूर दी गई थी, लेकिन यह कांग्रेस मुख्यालय के बाहर ही किया गया था.
पी वी नरसिम्हा राव
देश को नब्बे के दशक में जारी भारी उथल पुथल के बीच तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के जरिए आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाने वाले पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था. उबड़-खाबड़ों रास्ते से गुजरते हुए पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील राव ने 21 जून 1991 को देश के प्रधानमंत्री के रूप मे शपथ ली. आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे. वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष एवं 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे.
अपने लंबे राजनीतिक करियर में राव 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए. 1980 से 1984 के बीच भारत के विदेश मंत्री और जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री के अलावा वे 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक भारत के रक्षा मंत्री भी रहे.
क्या बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
राव को भारत रत्न देने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री पीवी नरसिम्हा राव गारू को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में, नरसिम्हा राव गारू ने विभिन्न क्षमताओं में भारत की व्यापक स्तर पर सेवा की. उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और कई वर्षों तक संसद एवं विधानसभा सदस्य के रूप में किए गए कार्यों के लिए समान रूप से याद किया जाता है.
पीएम मोदी ने आगे लिखा की उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था. प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव गारू का कार्यकाल महत्वपूर्ण उपायों का प्रतीक था जिसने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया, जिससे आर्थिक विकास के एक नए युग को बढ़ावा मिला. इसके अलावा, भारत की विदेश नीति, भाषा और शिक्षा क्षेत्रों में उनका योगदान एक ऐसे नेता के रूप में उनकी बहुमुखी विरासत को रेखांकित करता है, जिन्होंने न केवल महत्वपूर्ण परिवर्तनों के माध्यम से भारत को आगे बढ़ाया बल्कि इसकी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को भी समृद्ध किया.”