चंबा. जिले के ऊंचाई वाले दर्रो और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों में रह रहे लोग ठंड बढ़ते ही मैदानी इलाकों में पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं. इनका ज्यादतर जिंदगी इन बेजुबान मवेशियों के साथ गुजर जाती है.
यह गरीब लोग साल में दो बार अपने पशुधन के साथ इस कड़ाके की ठंड से बचने के लिए इन भेड़ बकरियों के साथ कबाइली इलाकों में रह रहे गद्दी, गूजर और अन्य समुदाय के लोग पड़ोसी राज्य पंजाब और हिमाचल के मैदानी इलाकों की तरफ पलायन करना शुरू कर देते हैं.
गर्मी में आ जाते हैं वापस
यह घुमंतू लोग अपने पूरे कुनबे के साथ भारी गर्मियों के दिनों में फिर से अपने पशुधन के साथ एक कतार में चलते हुए पहाड़ियों का रुख कर लेते है. सदियों से इसी परंपरा का निर्वाह करते इन लोगों का सारा जीवन इसी तरह गुजर जाता है.
करना पड़ता है दिक्कतों का सामना
सर्दियां शुरु होते ही यह लोग सड़क के रास्ते मैदानी इलाकों की तरफ अपने पशुधन के साथ पलायन करते हैं, जहां उनको रास्ते में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन लोगों को बारिश में अपने पशुधन के साथ खुले में ही रहना पड़ता है. जहां पर सरकार द्वारा किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है.
लोगों ने बताया कि उन्हें रास्ते पर चलने में काफी दिक्कत होती हैं. रास्ते में चलते समय उन्हें गाड़ी वाले भी तंग करते हैं. उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा उन्हें किसी भी तरह की सहायता प्रदान नहीं की जाती है.
उन्होंने प्रशासन और सरकार से आग्रह किया है कि जब वह रास्ते में अपने पशुधन के साथ पलायन करते हैं, तो उन्हें कुछ सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वह अपने पशुधन के साथ सुरक्षित अपने घर तक पहुंच सकें.