खजियार (चम्बा). पूरे देश में शिक्षा क्षेत्र में अग्रणी राज्य का दम भरने वाले हिमाचल प्रदेश में शिक्षा का एक स्याह पहलू यह भी है कि बच्चे दसवीं पास किये बिना ही स्कूल छोड़ रहे हैं. इस ड्राप आउट के पीछे मासूमियत से एक बच्चे ने कहा ‘पढ़ लिख कर डिग्रियां लेकर क्या हासिल होगा’.
बच्चों के अभिभावकों का भी यही कहना है कि जब सरकार ने रोजगार ही नहीं देना. इससे बेहतर है अभी से बच्चे वही काम करें जो डिग्रियां लेकर करना है. न मेहनत बर्बाद होगी न पैसा खर्च होगा. हिमाचल के मिनी स्विटजरलैंड कहे जाने वाले खजियार में यही हाल है. यहां बच्चे पढ़ाई से मुंह मोड़ रहे हैं क्योंकि उनके अभिभावकों को लगता है कि इससे कोई खास प्रभाव नहीं पड़ना.
पर्यटकों को आर्टीफिशियल फूल बेच रहा मासूम
13-14 साल का एक बच्चा मिला जो पर्यटकों को आर्टीफिशियल फूल बेचता है. फूलों की टोकरी में उसने खरगोश भी बैठा रखे हैं. जबकि सुबह धूप खिलते ही जब अन्य बच्चे अपना बस्ता उठाये वर्दी में स्कूल की ओर निकलते हैं तो यह खरगोश लेकर खजियार की वादियों के बीच सैलानियों के बीच पहुंच जाते हैं. एक तरफ स्कूल में बच्चे गणित का जमा घटाव, विज्ञान की परिभाषा, इतिहास की लड़ाइयों से अपने शिक्षा का ज्ञान बढ़ा रहे होते है और सुंदर भविष्य का ताना बाना बुनते हैं.
दूसरी ओर यह मासूम खरगोश लिए सैलानियों को आकर्षित करते है कि आप इन खरगोश के साथ फोटो खिंचाए और यादों को साथ ले जाये. एक तरफ बच्चे स्कूल में भविष्य में शिक्षक, डॉक्टर और अफसर बनकर सुंदर उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करते है वहीं यह बच्चे खरगोश के साथ बच्चे अभी से ही मासिक 5 -10हजार रुपये कमा रहे है. सरकार ने नारा दिया ‘पढ़ेगा इंडिया बढ़ेगा इंडिया’ लेकिन इस बीच बच्चों ने यह नारा दिया ‘कमाएगा इंडिया तो खायेगा इंडिया’. इस मासूम की प्रश्न वाचक निगाहों के पीछे एक दर्द एक चिंता, भविष्य को लेकर अभी से है जो चिंता डिग्री लेने वाले को बाद में होती है.
योजनाओं का लिटमस टेस्ट, प्रदेश में 9 लाख से ज्यादा बेरोजगार
केंद्र और राज्य सरकार ने करोड़ों की योजनाएं शिक्षा की अलख जगाने के लिए प्रयास तो किये लेकिन धरातल पर पहुंचने की बजाए यह फाइल दफन हो जाती है क्योंकि पढ़ने वालों से ज्यादा बेरोजगारों की कतार इन योजनाओं को मुंह चिढ़ा रही हैं. इंजीनियरिंग, शैक्षणिक व तकनीकी ज्ञान से भरपूर डिग्रियां लेने के बावजूद सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही हिमाचल की 70 लाख आबादी में से करीब 9 लाख से ज्यादा युवा बेरोजगारी की दहलीज पर मन मसोस कर बैठे हैं. तो आने वाली यह पीढ़ी भविष्य का ताना बाना कैसे बुनेगी यह सोचने वाली बात है.

पर्यटकों को भी परेशान करता है बच्चों का स्कूल न जाना
खजियार चम्बा जिला में डल्हौजी के समीप विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. हर वर्ष गर्मी हो या सर्दी देशी-विदेशी सैलानी यहां की खूबसूरत और मनमोहक वादियों को निहारने पहुंचते हैं. खजिया नाग के इस पवित्र झील के चारों ओर विशाल मैदान और देवदार के घने हरे-भरे
वृक्षों की छटा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. इस सुंदर पर्यटन स्थल में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए घोड़े, पैराग्लाइडर, स्कीइंग, फोटोग्राफी, रोलिंग बैलून और पारम्परिक पोशाक, चाय, टैक्सी और होटल व्यवसाय में करीब पांच सौ से ज्यादा लोग सेवाओं में जुटे हैं. इन्हीं लोगों के बीच खरगोश वाले बच्चे हर किसी को आकर्षित तो करते है लेकिन यहां आने वाले लोगों के मन में इन बच्चों के स्कूल न जाने की टीस बराबर है.
‘बाबू जी खरगोश के साथ फोटो खिंचवा लो’
झील के एक तरफ सरकारी प्राथमिक स्कूल तो दूसरी तरफ देवदार के झुरमुट में वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला. दोनों तरफ से जब प्रार्थना सभा की स्वर लहरियां गूंजती हैं तो खरगोश वाले यह बच्चे लालायित होकर स्कूल की ओर एक टकी लगाए जरूर देखते हैं लेकिन तभी उनकी निगाहें झील की ओर आ रहे सैलानियों पर पड़ते ही शिक्षा का ख्याल दिल से निकल जाता है. ‘बाबू जी खरगोश के साथ फोटो खिंचवा लो, जो भी पैसा देना है दे दो.’ इन बच्चों की दिल को झकजोर देने वाली यह पंक्तियां वास्तविक हैं. ये बच्चे स्कूल जाने के लिए भी तैयार है लेकिन आप उन्हें पढ़ाई पूर्ण होने के बाद रोजगार की गांरटी तो दें…