नई दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रविवार (28 दिसंबर) को अपना 140वां स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए कहा कि कांग्रेस का 140 साल पुराना गौरवशाली इतिहास सत्य, अहिंसा, त्याग, संघर्ष और देशभक्ति की महान गाथा बयान करता है।
1885 में शुरू हुई कांग्रेस की यात्रा ब्रिटिश शासन में सुधार की मांग से लेकर आज़ादी की लड़ाई की अगुवाई, आज़ादी के बाद लंबे समय तक सत्ता और फिर राजनीतिक प्रभाव में गिरावट तक पहुंचती है। आइए जानते हैं कांग्रेस के इतिहास की तीन बड़ी बातें और महात्मा गांधी का इस पार्टी को लेकर क्या नजरिया था।
- 1885 में ए.ओ. ह्यूम ने की कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को अंग्रेज अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (A.O. Hume) ने की थी। उस समय कांग्रेस का उद्देश्य भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के भीतर अधिक स्वशासन की मांग करना था।
मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में कांग्रेस का पहला अधिवेशन हुआ, जिसमें 72 समाज सुधारक, वकील और पत्रकार शामिल हुए। शुरुआती दौर में कांग्रेस को एक ऐसे “सेफ्टी वाल्व” के रूप में देखा गया, जिसके जरिए भारतीय अपनी शिकायतें ब्रिटिश सरकार तक पहुंचा सकें।
- याचिकाओं से जन आंदोलन तक का सफर
शुरुआत में कांग्रेस की राजनीति प्रार्थनाओं और याचिकाओं तक सीमित थी। इससे एक ओर ब्रिटिश सरकार नाराज़ रहती थी, तो दूसरी ओर भारतीयों को लगता था कि कांग्रेस पर्याप्त संघर्ष नहीं कर रही।
1906 में पार्टी के भीतर मतभेद खुलकर सामने आए और नरमपंथी (गोपाल कृष्ण गोखले, सुरेंद्रनाथ बनर्जी) तथा गरमपंथी (बाल गंगाधर तिलक) गुट बन गए। 1915 में पार्टी फिर एकजुट हुई और इसी दौर में महात्मा गांधी कांग्रेस से जुड़े।
गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक जन आंदोलन में बदल गई। 1929 के लाहौर अधिवेशन में, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में, कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य घोषित किया। यही आंदोलन आगे चलकर 1947 में आज़ादी का आधार बना, हालांकि इसके साथ देश विभाजन का दर्द भी जुड़ा।
- आज़ादी के बाद वर्चस्व और फिर गिरावट
आज़ादी के बाद कांग्रेस देश की सबसे ताकतवर पार्टी बनी और शुरुआती छह आम चुनावों में लगातार जीत हासिल की। नेहरू के नेतृत्व में पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी आर्थिक नीतियों और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को अपनाया।
हालांकि, पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष चलता रहा। इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस का विभाजन हुआ और 1975-77 की आपातकाल अवधि के बाद 1977 में कांग्रेस को पहली बार सत्ता से बाहर होना पड़ा।
1990 के दशक में बीजेपी के उभार के साथ कांग्रेस का वर्चस्व कमजोर पड़ने लगा। 2004-14 के बीच पार्टी ने एक बार फिर सत्ता में वापसी की, लेकिन 2014 और 2019 में ऐतिहासिक हार झेली। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 99 सीटों तक पहुंची, लेकिन इसके बाद के राज्य चुनावों में प्रदर्शन ने फिर से पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए।
कांग्रेस पर महात्मा गांधी का दृष्टिकोण
महात्मा गांधी शुरू में कांग्रेस को राष्ट्रीय एकता का मंच मानते थे, लेकिन आज़ादी के करीब आते-आते उनका मानना था कि सत्ता की राजनीति से अलग होकर कांग्रेस को लोक सेवा संगठन बन जाना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस को ‘लोक सेवक संघ’ में बदलने का विचार रखा था, हालांकि यह अमल में नहीं आ सका।
140 साल का सफर तय कर चुकी कांग्रेस आज एक बार फिर खुद को नए सिरे से परिभाषित करने की चुनौती के सामने खड़ी है। उसका इतिहास गौरवशाली रहा है, लेकिन भविष्य की राह उसके संगठनात्मक और राजनीतिक पुनरुत्थान पर निर्भर करेगी।
