नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है कि अरावली पर्वत श्रृंखला की पारिस्थितिकी पर कोई तात्कालिक खतरा नहीं है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पौधरोपण अभियान, इको-सेंसिटिव जोन (Eco-Sensitive Zone) अधिसूचनाएं और खनन व शहरी गतिविधियों की सख्त निगरानी सुनिश्चित कर रही हैं कि अरावली प्राकृतिक धरोहर और देश की पारिस्थितिक ढाल के रूप में सुरक्षित बनी रहे।
सुप्रीम कोर्ट की 100-मीटर गाइडलाइन पर भ्रम को किया दूर
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 100-मीटर नियम की गलत व्याख्या की जा रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने नागरिकों से अप्रमाणित जानकारी फैलाने से बचने की अपील की।
मंत्री ने बताया कि अरावली की कुल भूमि 1,47,000 वर्ग किलोमीटर है, और इस क्षेत्र में केवल 0.19% हिस्से में ही खनन की अनुमति है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार 90% अरावली क्षेत्र संरक्षित जोन में आता है, और इसमें किसी भी तरह की छूट नहीं है।
दिल्ली के अरावली हिल्स में कोई खनन नहीं
भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि दिल्ली के अरावली हिल्स में खनन की पूरी तरह से मनाही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों को स्वीकार किया, जिसमें यह उल्लेख किया गया कि 100 मीटर से कम ऊँचाई वाले पहाड़ों को प्राचीन अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा नहीं माना जाएगा।
अरावली पर्वत श्रृंखला का भौगोलिक महत्व
अरावली पर्वत श्रृंखला भारत के चार राज्यों – दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली हुई है। यह श्रृंखला न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि जल संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और जैव विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मंत्रालय ने कहा कि वर्तमान में चल रही पौधरोपण परियोजनाएं, संरक्षित क्षेत्र का विस्तार और निगरानी उपाय अरावली की पारिस्थितिक सुरक्षा को सुनिश्चित कर रहे हैं। यह कदम स्थानीय निवासियों, पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के सहयोग से उठाए जा रहे हैं, ताकि अरावली एक प्राकृतिक विरासत और दीर्घकालिक पारिस्थितिक ढाल बनी रहे।
विशेषज्ञों की राय
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली की संरक्षा और सतत विकास के लिए सख्त नियामक ढांचा और स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक है। मंत्री यादव ने भी जोर देकर कहा कि नागरिक और मीडिया को अप्रमाणित जानकारी के बजाय सरकारी अधिसूचनाओं और वैज्ञानिक तथ्यों पर भरोसा करना चाहिए।
