नई दिल्ली. भले ही 14वीं और 15वीं वित्त आयोगों ने ग्रामीण निकायों को अपनी आमदनी बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया हो, लेकिन असल में पंचायतों की खुद की आमदनी 2017-18 से 2021-22 के बीच 10.5% घटकर सिर्फ ₹59 प्रति व्यक्ति रह गई है। यह बात ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में सामने आई है। अब हालत यह है कि पंचायतें अपनी कुल आमदनी का 90–95% हिस्सा केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदानों पर ही निर्भर करती हैं। इसी को विशेषज्ञ “dependency trap” (निर्भरता का जाल) कह रहे हैं।
पंचायतों को मिला था संविधानिक दर्जा
1992 में भारत ने पंचायतों को संविधानिक दर्जा देकर उन्हें “स्वशासन संस्थान” (institutions of self-government) के रूप में मान्यता दी थी। देश में करीब 2.5 लाख ग्राम पंचायतें, 6,500 ब्लॉक पंचायतें और 600 जिला पंचायतें हैं। सभी राज्यों को अपने पंचायत राज कानूनों के तहत स्थानीय स्तर पर कर और शुल्क वसूलने की शक्ति देनी होती है। 2017-18 से 2021-22 के बीच भारत में 78% स्थानीय राजस्व ग्राम पंचायतों ने जुटाया, जबकि ब्लॉक पंचायतों का हिस्सा सिर्फ 10.6% और जिला पंचायतों का 11.2% रहा। ज्यादातर राज्यों ने ब्लॉक और जिला पंचायतों को टैक्स वसूली का अधिकार नहीं दिया, इसलिए वे कमजोर पड़ी हुई हैं।
किस राज्य में कौन-सी पंचायतें टैक्स वसूलती हैं
2020-21 से 2023-24 के बीच सिर्फ उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की जिला पंचायतें कुछ कर वसूल रही थीं। ब्लॉक स्तर पर टैक्स वसूली सिर्फ पश्चिम बंगाल में हो रही थी। विशेषज्ञ एच. के. अमर नाथ के अनुसार, ब्लॉक और जिला पंचायतें राज्य सरकार की प्रशासनिक शाखा की तरह काम करती हैं और वित्तीय फैसले स्थानीय विधायक (MLA) तय करते हैं।
पंचायतों की आय के स्रोत
15वें वित्त आयोग ने 2021-26 के लिए ग्रामीण निकायों को ₹2.8 लाख करोड़ दिए, जिनमें से 60% बंधे हुए अनुदान (tied grants) हैं और 40% खुले (untied grants), जिन्हें पंचायतें अपनी जरूरत के हिसाब से खर्च कर सकती हैं। बंधे हुए अनुदान सिर्फ निर्धारित कामों (जैसे पानी, सफाई आदि) पर खर्च किए जा सकते हैं, जिससे पंचायतों की स्वतंत्रता कम हो जाती है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि अगर कोई गांव पहले से ही इन सुविधाओं से “संतृप्त” है, तो बचा हुआ पैसा दूसरे कामों में लगाने की छूट दी जानी चाहिए।
पंचायतें खुद पैसा कैसे कमा सकती हैं
Own Source Revenue (OSR) मतलब पंचायतों की खुद की कमाई — यानी टैक्स, शुल्क, जुर्माना, किराया, रॉयल्टी या नीलामी से मिलने वाला पैसा।
उदाहरण के लिए –
भूमि या संपत्ति खरीदते वक्त दिया जाने वाला स्टांप ड्यूटी शुल्क,
मनोरंजन कर (entertainment tax),
पेशेवर कर (profession tax),
पानी, कचरा या सड़क उपयोग शुल्क,
ग्राम पंचायत की जमीन की नीलामी,
मछली पालन या जंगल से लकड़ी की बिक्री इत्यादि।
इनमें सबसे बड़ा स्रोत पानी की आपूर्ति शुल्क (water charges) है।
दक्षिणी राज्यों का प्रदर्शन बेहतर
रिपोर्ट के अनुसार गोवा, पुडुचेरी, केरल, आंध्र प्रदेश और गुजरात ने पंचायतों को टैक्स वसूलने की सही शक्ति दी है। जबकि झारखंड जैसे राज्यों ने नियम बनाए तो हैं, लेकिन वसूली के स्पष्ट निर्देश नहीं दिए। कई राज्य अब तक अपने राज्य वित्त आयोग (SFC) की रिपोर्ट भी जारी नहीं कर पाए हैं, जिससे स्थानीय निकायों की स्थिति कमजोर बनी हुई है। दक्षिण भारत (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक) ने अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में पंचायतों की खुद की आमदनी बेहद कम रही।
उदाहरण के लिए — यूपी में 2020-21 से 2023-24 के बीच ज्यादातर ग्राम पंचायतों ने कोई टैक्स नहीं वसूला।
संपत्ति कर और अन्य वसूली
संपत्ति कर (Property Tax) में कर्नाटक सबसे आगे है, उसके बाद महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश हैं। ओडिशा और यूपी में ग्राम पंचायतों को संपत्ति कर वसूलने का अधिकार ही नहीं दिया गया है। कर्नाटक उन राज्यों में शामिल है जहां पंचायतों को ज्यादा अधिकार, समय पर अनुदान और पर्याप्त स्टाफ मिला है।
क्यों नहीं वसूल पाती पंचायतें टैक्स
साफ दिशा-निर्देशों की कमी – पंचायतों को यह नहीं पता कि कौन-से दर से टैक्स लगाना है।
कर्मचारी की कमी – कई जगह एक ही सचिव कई पंचायतें संभालता है। तकनीकी ज्ञान की कमी – संपत्ति का सही आकलन और रिकॉर्ड अपडेट नहीं होते।
राजनीतिक कारण – टैक्स बढ़ाने से वोटरों की नाराजगी का डर रहता है।
लोगों में जागरूकता की कमी – ग्रामीण लोग सोचते हैं कि यह सरकार का काम है, फिर हमें क्यों देना चाहिए।
समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पंचायतें संपत्ति कर और पानी शुल्क सही तरीके से वसूलें, तो वे अपने कर्मचारियों की सैलरी और विकास कार्य दोनों चला सकती हैं।
इसके लिए जरूरी है:
पंचायतों की ट्रेनिंग और तकनीकी सहायता बढ़ाई जाए।
राज्य सरकारें स्थानीय टैक्स नियम स्पष्ट करें।
डिजिटलीकरण और पारदर्शिता लाई जाए।
CPR (Common Property Resources) जैसे मछली पालन, जंगल की उपज आदि से भी कमाई के अवसर बढ़ाए जाएं।
पंचायतों की कमजोर टैक्स वसूली ने उन्हें केंद्र और राज्य की ग्रांट्स पर निर्भर बना दिया है।
इससे 73वें संविधान संशोधन का असली उद्देश्य — यानी पंचायतों को “स्वशासन संस्थान” बनाना — कमजोर पड़ गया है।
अगर राज्यों ने समय पर सुधार किए और पंचायतों की क्षमता बढ़ाई, तो गांव वास्तव में आत्मनिर्भर प्रशासनिक इकाइयां बन सकती हैं।
