नई दिल्ली. 2006 में मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने Bombay High Court द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर रोक लगा दी है। यह निर्णय महाराष्ट्र एटीएस (Anti-Terrorism Squad) की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी गई थी।
Supreme Court ने कहा: आरोपियों की रिहाई नहीं होगी रोकी, लेकिन केस पर फिर होगी सुनवाई
जस्टिस एम एम सुंदरेश और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह साफ किया कि Stay Order का असर आरोपियों की जेल से रिहाई पर नहीं पड़ेगा। यानी जो आरोपी जेल से छूट चुके हैं, वो बाहर रहेंगे, लेकिन मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट में खुलेगा। साथ ही कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को नोटिस जारी कर उनके जवाब मांगे हैं।
Bombay High Court ने क्यों किया था सभी को बरी?
22 जुलाई 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि Prosecution पूरी तरह असफल रहा है, और जो सबूत पेश किए गए हैं, वे निर्णायक नहीं हैं। यह मानना कठिन है कि आरोपियों ने यह अपराध किया है ।इस फैसले के बाद, आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि High Court का फैसला तथ्यों और सबूतों को नजरअंदाज करता है।
क्या था 2006 Mumbai Train Blasts का पूरा मामला?
Date: 11 जुलाई 2006
Time Duration: महज़ 11 मिनट
Blasts: कुल 7 धमाके
Location: चर्चगेट से चलने वाली ट्रेनों के First Class Compartments
Stations: माटुंगा रोड, माहिम, बांद्रा, खार, जोगेश्वरी, भयंदर और बोरीवली
Casualties: 189 लोगों की मौत, 800 से अधिक घायल
इस हमले को planned terror conspiracy माना गया था। जांच एजेंसियों के अनुसार, बम प्रेशर कुकर में रखे गए थे, जो ट्रेनों में टाइमिंग के साथ फटे।
Lower Court का फैसला: 5 को Death Penalty, 7 को Life Imprisonment
2015 में विशेष मकोका अदालत ने: 5 आरोपियों को फांसी की सज़ा 7 आरोपियों को आजीवन कारावास 1 आरोपी को बरी कर दिया था। ATS का दावा था कि सभी आरोपी SIMI (Students Islamic Movement of India) के सदस्य थे, और उन्होंने Lashkar-e-Taiba के पाकिस्तानी आतंकियों के साथ मिलकर हमले की साजिश रची थी।
Bombay High Court के खिलाफ Supreme Court पहुंची ATS, क्या होगा आगे?
महाराष्ट्र ATS ने अपने अपील में कहा कि High Court ने सभी तकनीकी, गवाहों और डिजिटल सबूतों को नजरअंदाज किया है। ये आरोपी देश विरोधी गतिविधियों में शामिल थे, और उन्हें बरी करना न्याय के साथ अन्याय है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अंतिम निर्णय देगा कि क्या High Court का फैसला कायम रहेगा या फिर Lower Court के निर्णय को पुनः बहाल किया जाएगा।