नई दिल्ली. बुधवार को लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah के सामने विपक्षी सांसदों ने कागज़ के टुकड़े फाड़कर फेंके। मीडिया रिपोर्ट्स और Lok Sabha video clips में देखा जा सकता है कि अमित शाह के भाषण के दौरान कागज़ के गोले सदन में उड़ते रहे। ये कागज़ के टुकड़े serious criminal allegations वाले प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को हटाने से जुड़े तीन विवादास्पद विधेयकों की प्रतियां बताई जा रही हैं।
विधेयक पर विपक्ष का कड़ा विरोध
विपक्ष ने इन विधेयकों को “कठोर” और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया। विपक्ष का कहना है कि सरकार इसका उपयोग political misuse के लिए करेगी और इसे विपक्ष शासित राज्यों को अस्थिर करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
AIMIM प्रमुख Asaduddin Owaisi का विरोध
एआईएमआईएम के प्रमुख Asaduddin Owaisi ने विधेयक पेश करने के कदम की तीखी आलोचना की और इसे executive overreach करार दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सरकारी एजेंसियों को बिना प्रमाण और तुच्छ आरोपों के आधार पर न्यायाधीश और जल्लाद बनने की खुली छूट देता है। यह लोकतांत्रिक सरकारों के लिए खतरे की घंटी है। ओवैसी ने प्रस्तावित विधेयकों की तुलना हिटलर के Gestapo से की।
कांग्रेस का बयान
कांग्रेस सांसद Manish Tiwari ने विधेयकों को constitutionally destructive बताया और कहा कि ये राज्य संस्थानों के political misuse का रास्ता खोलते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह संविधान के मूल ढांचे के लिए “पूरी तरह विनाशकारी” साबित होगा।
अमित शाह ने पेश किए तीन विधेयक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए, जिनमें शामिल हैं:
Constitution (One Hundred and Thirtieth Amendment) Bill, 2025
Union Territories Government (Amendment) Bill, 2025
Jammu & Kashmir Reorganisation (Amendment) Bill, 2025
इन विधेयकों के तहत serious criminal allegations के चलते हिरासत में लिए गए प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों को हटाने का कानूनी ढांचा बनाने का प्रयास किया गया है। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन करके यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी मंत्री या मुख्यमंत्री के खिलाफ गंभीर अपराधों के आरोप होने पर उन्हें हटाया जा सके।
विधेयक का उद्देश्य
इन संशोधनों के अनुसार, गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को हिरासत में रखना constitutional integrity और good governance principles को प्रभावित कर सकता है। विधेयक का दावा है कि इससे जनता का संवैधानिक विश्वास कम हो सकता है और शासन में बाधा आ सकती है।