शिमला. हिमाचल की राजनीति में संजय गांधी ने एक बार ऐसी हलचल मचाई थी कि सीएम को कुर्सी तक छोड़नी पड़ी थी. यह वाक्य उस वक्त का है, जब प्रदेश के सीएम डॉ. यशवंत सिंह परमार थे. इसी बीच प्रदेश के कसौली में युवा कांग्रेस द्वारा किए गए एक समारोह का आयोजन में संजय गांधी शिरकत करने पहुंचे.
इस कार्यक्रम के बाद एक बैठक हुई. इस बैठक में तत्कालीन परमार भी पहुंचे. बातचीत चल ही रही थी कि अचानक संजय गांधी ने परमार से कहा कि आप सीएम की कुर्सी छोड़ दें. यह पद किसी युवा को दिया जाना चाहिए.
परमार इंदिरा के बेहद करीब थे
हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डाक्टर यशवंत सिंह परमार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबियों में से एक थे, लेकिन संजय गांधी के निशाने पर वह कब आए यह वह खुद नहीं जानते थे. भरी बैठक में संजय गांधी ऐसा कह देंगे इस बात का भी उन्हें अंदाजा नहीं था.
संजय किसी और को मुख्यमंत्री पद पर चाहते थे
उस समय संजय गांधी भारतीय राजनीति में काफी ताकतवर थे. वह हिमाचल में परमार की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. संजय गांधी से इस तरह मतभिन्नता होने के कारण कुछ अरसा बाद परमार ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था.
तब के वह युवा नेता याद करते हुए कहते है कि इंदिरा गांधी ने तब परमार से कहा भी था कि वह संजय गांधी की बातों का अन्यथा न लें, लेकिन वह नहीं माने और जिला सिरमौर में अपने गांव लौट गए.
संजय गांधी के खिलाफ युवा नेताओं ने कर दिया था विरोध
हालांकि संजय गांधी को युवा नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ा था, दरअसल यशवंत सिंह परमार हिमाचल की राजनीति का बड़ा चेहरा थे और बैठक में उपस्थित हर युवा उन्हें पसंद करता था. जब संजय गांधी ने उनसे कुर्सी छोड़कर युवाओं को देने के लिए कहा तो युवा खुद ही इसके बचाव में आ गए. उन्होंने संजय गांधी की बात का विरोध किया. यह मामला वहां पर खत्म हो गया, लेकिन एक टीस यशवंत सिंह परमार के दिल में घर कर गई. उस बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे राजेश पायलट भी मौजूद थे.
1977 में रामलाल ठाकुर बन गए थे नए सीएम
संजय गांधी के साथ मतभिन्नता होने के कारण परमार ने अपना इस्तीफा दे दिया व वह अपने गांव लौट गए और उनकी जगह जुब्बल कोटखाई से कांग्रेस नेता राम लाल ठाकुर को 1977 में जनवरी के आखिरी सप्ताह में प्रदेश का नया मुख्यमंत्री बनाया गया. वह तीस अप्रैल तक करीब तीन महीने तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद वह चुनाव हार गए और नेता 1980 तक नेता प्रतिपक्ष रहे.