नई दिल्ली. आरटीई में शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य नहीं लेने का प्रावधान है. बावजूद शिक्षकों की सबसे बड़ी समस्या उन्हें विभिन्न प्रकार की गैर शैक्षणिक गतिविधि में लगाना ही है. ज्यादातर शिक्षक मानते हैं कि शिक्षकोंं को पढ़ाने के अलावा अन्य गतिविधियोंं में लगाने की वजह से शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है.
सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शिक्षा, विधि और संसदीय मामले मंत्री सुरेश भारद्वाज ने शिक्षकों से सुझाव मांगे थे. स्कूलों में छात्रों की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए उन्होंने शिक्षकों को स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए आगे आने को कहा था. शिक्षा मंत्री के अाह्वान पर कई शिक्षकों और शिक्षा जगत से सरोकार रखने वाले लोगों ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं.
आरटीई को लागू करते हुए सात साल पहले जो सपने संसद में देखे गए थे, वह अब भी बहुत दूर है. ‘असर’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां 2014 में 48.1 फीसदी पांचवी के छात्र दूसरी कक्षा की किताब पढ़ पाते थे. वहीं, दो सालों में, साल 2016 में यह घटकर 47.8 फीसदी रह गया.
सोलन डाइट से 2008 में सेवानिवृत शिक्षक हर्षवर्धन जोशी मानते हैं कि शिक्षकों को पहले पढ़ाने के लिए छोड़ना चाहिए. वे लिखते हैं, “पहले शिक्षकों को पढ़ाने के लिए छोड़ें उसके बाद उनमें बेहतर शैक्षणिक योग्यता विकसित करने पर काम करें.”
सरकारी स्कूलों में पढ़ें मंत्री और अफसर के बच्चें
सुरेन्द्र ठाकुर का मानना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक ही अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं सबसे पहले शिक्षको के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. नारंग की सुनिता तोमर भी सुरेन्द्र की बातों से इत्तेफाक रखती हैं. वे लिखती हैं, “ओके सर, शिक्षक ही क्यों? सभी सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें तभी यहां की हालत सुधर सकती है.”
मधु चौधरी चाहती हैं कि नेता के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करें. वे फेसबुक पर लिखती हैं, ” क्लास वन अफसर और नेताओं के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ें तभी सुधार हो सकता है, वरना हम ही क्यों अपने बच्चों को टाट-पट्टी पर बिठायें.”
कमीशन पर शिक्षकों की हो नियुक्ति
सुनील कुमार शिक्षकों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए ‘बैकडोर’ से भर्ती बंद करने की पैरवी करते हैं, वे कहते हैं कि केवल कमीशन के आधार पर ही शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए.
टीजीटी शिक्षक राज ठाकुर के पास कई सुझाव हैं. वे तीन साल पर शिक्षकों का ट्रांसफर सही नहीं मानते हैं. वे लिखते हैं, ” टीचर को टीचर रहने दें, बाबूगिरी(गैर शैक्षणिक कार्य) करवाना बंद करो, सभी शिक्षकों को एक जैसा वेतन मिले. उन्हे लगता है कि एसएमसी अब राजनीति का अड्डा बन चुका है. उसे कम किया जाना चाहिए.
धर्मेंद्र ठाकुर और पंकज ओलाविया तीन साल में शिक्षकों के स्थानांतरण को बंद करने के लिए अपना तर्क देते हैं. वे कहते हैं कि कक्षा एक से लगातार पांचवी तक पढ़ाने की जिम्मेवारी एक ही शिक्षक की हो ताकि पांच सालों में शिक्षकों के प्रदर्शन को आंका जा सके.
बंद हो ग्रेडिंग व्यवस्था
हेम चंद सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए ग्रेडिंग पद्धति को हटाकर दोबारा फेल-पास सिस्टम लागू करने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं कि विषयवार प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली की जानी चाहिए और पढ़ाई में इनोवेशन लानेवाले, कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित शिक्षकों को पुरस्कृत करने की जरूरत है.
चंबा के पंकज कुमार को भी लगता है कि एसएमसी गुंडागर्दी का अड्डा बन गया है. वे बार-बार प्रयोग से नाराज दिखते हैं. कहते हैं, ” सर्वप्रथम तो हमें चूहा या मेंढ़क समझकर प्रतिदिन नया प्रयोग न करें. निजी स्कूल तुरन्त प्रभाव से बंद किये जायें, क्योंकि शिक्षा जनता को प्रदान करना लोकतांत्रिक सरकार का दायित्व है.
हालांकि उन्हें शक है कि उनकी (शिक्षकों) बातें सुनी जाएगी और उसपर अमल लाया जाएगा!