सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की नसीहत दी है. कोर्ट ने कहा कि किसानों के खुदकुशी करने के बाद लोन माफी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि लोन के प्रभाव को कम करने की जरूरत है.
एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से पूछा कि लोन के समय बीमा देने के बावजूद किसान फसल खराब होने की स्थिति में डिफाल्टर क्योंं हो जाता है? कोर्ट ने कहा कि फसल खराब होने की स्थिति में लोन चुकाने की जिम्मेवारी बीमा कंपनी की होनी चाहिए. कोर्ट ने छह महीने के भीतर योजनाओं को पूरी तरह से लागू करने को कहा है.
मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि कोर्ट सरकार के खिलाफ नहीं है लेकिन सरकार को किसानों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं को कागजों से निकाल कर जमीन पर उतारने के लिए पूरी ताकत झोकनी होगी. योजनाओं को अमली जामा पहनाना होगा. कोर्ट ने कहा कि ये गंभीर मामला है और रातों-रात हल नहीं निकाला जा सकता. इसलिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह महीने का वक्त दिया है ताकि इन योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू किया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट के सवालों के जवाब में केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना से 5.34 करोड़ किसान जोड़े गए हैं. किसानों को इन योजनाओं के बारे में विभिन्न स्तर पर जानकारी दी जा रही है. यहां तक कि पंचायत स्तर पर भी योजनाओं का प्रचार किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि किसानों की खुदकुशी और उनकी फसल के बीमे को लेकर क्या कदम उठाए जा रहे हैं और भविष्य में क्या योजनाएं हैं?
जनहित याचिका में गुजरात में किसानों की खुदकुशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट से दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इसका दायरा बढ़ाते हुए सभी राज्यों और केंद्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा था.