नई दिल्ली. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और मशीन लर्निंग को लेकर बढ़ती बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायिक प्रक्रिया में AI का इस्तेमाल बेहद सावधानी के साथ किया जा रहा है और यह तकनीक कभी भी न्यायिक निर्णय लेने की जगह नहीं लेगी।
यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें न्यायपालिका में AI के उपयोग के लिए नियम और निगरानी व्यवस्था की मांग की गई थी।
“AI सिर्फ सहायता करेगा, फैसला इंसान ही करेगा”: CJI सूर्या कांत
चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालतें तकनीक के महत्व को समझती हैं, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाएगा कि न्याय केवल उसी पर आधारित हो जिस पर भारतीय संविधान आधारित है—मानवीय विवेक, संवैधानिक नैतिकता और न्याय का मूल सिद्धांत।
CJI ने टिप्पणी की:
“न्यायपालिका तकनीक के साथ अत्यधिक सतर्कता बरत रही है। AI कभी भी न्यायिक निर्णय का स्थान नहीं ले सकता। अंतिम फैसला हमेशा मानव न्यायाधीश ही लेंगे।”
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने से किया इंकार
बेंच ने माना कि जजों के लिए AI-generated सामग्री का cross-check करना ज़रूरी है, लेकिन न्यायालय ने न्यायिक हस्तक्षेप से संबंधित किसी प्रकार के निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।
बेंच का मत था कि AI के उपयोग पर दिशा-निर्देश बनाने की प्रक्रिया नीति का विषय है, न कि न्यायिक आदेश का।
सुनवाई का मुख्य बिंदु
न्यायपालिका में AI के उपयोग पर नियंत्रण की मांग वाली याचिका
AI को सहायक तकनीक के रूप में उपयोग करने पर सहमति
निर्णय केवल मानव जज ही लेंगे
इस विषय पर फिलहाल कोई न्यायिक निर्देश जारी नहीं
क्यों बढ़ रही है AI को लेकर सतर्कता?
दुनिया भर में चैटबॉट्स और AI टूल्स के बढ़ते उपयोग के बीच चिंता है कि:
क्या AI न्यायिक मिसालों को सही ढंग से व्याख्यायित करेगा?
क्या AI नैतिकता, संवेदना और मानव भावनाओं को समझ पाएगा?
क्या इससे न्याय व्यवस्था निर्जीव और यांत्रिक हो जाएगी?
इन्हीं चिंताओं को देखते हुए भारत की सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि AI सिर्फ जानकारी, विश्लेषण और प्रशासनिक प्रक्रियाएं आसान करेगा, न कि न्याय देगा।
