बिलासपुर. गज-ग्राह की कथा सुनी है? वही जिसमें गज (हाथी) को ग्राह (मगरमच्छ) पानी में खींच रहा था. गज की प्रार्थना पर स्वयं नारायण आए और ग्राह को मारकर उसका उद्धार किया. भाखड़ा नांगल बांध की झील गोविंद सागर में डूबे पुराने शहर के मंदिरों का भी कुछ ऐसा ही हाल है. महीनों तक पानी में गुम रहने वाले इन मंदिरों को उद्धार करने वालों का इंतजार है तो शहर के आस्थावान भी किसी भी तरह इन मंदिरों को बचाने की आस लगाए हैं.
बसाया गया शहर, भुलाए गए भगवान
भाखड़ा नांगल बांध बनने के बाद जब गोविंद सागर का विस्तार हुआ तो बिलासपुर नगर के लोगों का विस्थापन शुरू हुआ. प्रशासन ने लोगों को दूसरी ऊंची जगह पर बसा दिया. मगर इस सब के बीच भगवान भुला दिए गए. पुराने सांडू के मैदान में कई पौराणिक और नक्काशीदार मंदिर बने हुए थे जो झील के पानी में समा गए.

लाखों रुपये आवंटित हुए मगर नहीं बनी बात
1960 में सर्वदलीय भाखड़ा विस्थापित समिति ने इन मंदिरों को ऊंचाई वाली जगहों पर विस्थापित करने की मांग उठाई. हिमाचल सरकार ने केंद्र के सामने यह मुद्दा उठाया और जनभावनाओं का सम्मान करते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग ने सदियों पुराने इन मंदिरों को पुनर्स्थापित करने के आदेश दिए. इसके लिए सरकार ने लाखों रुपये का फंड भी स्वीकृत किया मगर काम आगे नहीं बढ़ सका.
हर दो-तीन साल पर विभागीय टीमें सर्वे के लिए इलाके में आती रहीं मगर अब तक 15 साल बीत चुके हैं और मंदिरों को यहां से हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका.
कुछ ही महीने सांस ले पाते हैं मंदिर के पत्थर
मंदिरों की स्थापत्य कला बेजोड़ है. देश के दूसरे कोनों में ऐसी स्थापत्य कला के मंदिर सहेजे जा रहे हैं. मगर यहां हाल दूसरा है. यह मंदिर साल के ज्यादातर समय पानी में डूबे रहते हैं. कुछ ही महीने ऐसे होते हैं जब पानी घटता है तो मंदिर का कुछ हिस्सा बाहर आता है और यह पत्थर सांस ले पाते हैं. जाहिर है, क्षरण से इन पत्थरों को नुकसान पहुंच रहा है मगर अब भी इनकी सुंदरता शेष है और इसे सहेजने की जरूरत है.
प्रधानमंत्री से लगाई गुहार
पुरातत्व विभाग की खानापूरी और स्थानीय प्रशासन की अनदेखी से क्षेत्रीय लोग आहत हैं. बिलासपुर के वरिष्ठ नागरिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करते हैं कि इन मंदिरों को पुरातात्विक धरोहर घोषित कर इन्हें बचाने के लिए तेज और कारगर कदम उठाए जाए.