इस समय हमारे देश में कई तरह की संक्रामक बिमारियां फैली हुई हैं जैसे- इन्सेफलाईटिस, स्वाईन फ़्लू, डेंगू! हिमाचल में स्वाईन फ्लू से अब तक कई मौतें हो चुकी हैं. जबकि पिछले 15 दिनों से स्क्रब टाईफस के आतंक से पूरी राज्य सहमा हुआ है. यदि इससे समय रहते नहीं निपटा गया और अस्पतालों में उचित व्यवस्था नहीं की गयी तो यह भी स्वाईन फ्लू की तरह व्यापक रूप से फ़ैल सकता है!
पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल के गावों में ‘स्क्रब टाईफस’ फैलने की ख़बरें लगभग हर वर्ष आने लगी हैं. साल 2016 में हिमाचल में इस संक्रमण से लगभग 30 लोगों की मौतें हुईं जबकि इस वर्ष अब तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 300 लोग संक्रमित बताये जा रहे हैं. संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब इस वर्ष तीन मौतें अकेले छौहारा क्षेत्र से दर्ज की गयीं! स्क्रब टाइफस से इस क्षेत्र के लोगों में भय व्याप्त है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसको लेकर विशेष प्रबंध किये जाने के दावे किये जा रहे हैं. लेकिन व्यवस्था पर इसका असर नज़र नहीं आ रहा. दरअसल एक 25 वर्षीय युवती की मौत सही समय पर इलाज न मिलने के कारण हो गयी. हालाँकि नेशनल हेल्थ मिशन के डायरेक्टर पंकज राय ने शिमला, मनाली और अन्य जिलों के क्षेत्रीय अस्पतालों में स्वाईन फ्लू और स्क्रब टाईफस से निपटने के लिए पर्याप्त मात्रा में दवाओं की उपलब्धता का दावा किया है !
आखिर क्या है स्क्रब टाईफस
स्क्रब टाईफस, डेंगू, चिकनगुनिया की श्रेणी की ही एक संक्रामक बीमारी है. 103 से 105 डिग्री तेज़ बुखार वाली यह बीमारी पिस्सुयओं के काटने से फैलती है. पिस्सू कई तरह के होते हैं जो मनुष्य के शरीर से लेकर जानवरों और चूहों के शरीर, झाड़ियों तथा मिट्टी तक में पाए जाते हैं. जब यही पिस्सू मनुष्य को काटते हैं तो उनके लार में मौजूद ‘रिक्टेशिया’ नामक बैक्टीरिया मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाता है. रक्त में प्रवेश करने के 48 से 72 घंटे के भीतर यह विषाणु मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता हैं.
इसके संक्रमण के लक्षण डेंगू और चिकनगुनिया से काफी मिलते जुलते हैं. इसके सक्रिय होने के उपरान्त मनुष्य को तेज़ बुखार, शरीर में दर्द, खांसी आदि के लक्षण प्राम्भिक तौर पर दिखायी देते हैं तथा पांच से सात दिन बाद शरीर पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस रोग को पहचानने का यह सबसे आसान लक्षण है. यदि इसका उपचार सही समय पर नहीं किया गया तो रक्त से प्लेटलेट की संख्या में कमी आने लगती है. यदि यह संक्रमण किसी वृद्ध को हुआ तो उसकी जान को खतरा ज्यादा होता है.
स्क्रब टाइफस का इतिहास
अगस्त और सितम्बर माह में यह बीमारी भारत और नेपाल के पहाड़ी इलाकों में खास तौर से घने जंगल वाले उन इलाकों में फैलती है जहाँ गन्दगी होती है. इस बीमारी को सबसे पहले 1930 में जापान में पहचाना गया. जो समय समय पर दुनिया के अनेक पहाड़ी इलाकों में अनेक रूप धारण कर फैलता रहा. अभी तक इसका कोई स्थायी समाधान नहीं खोजा जा सका है जिससे मनुष्य के भीतर इसकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सके. हालत यह है कि अभी तक इस बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों के प्रकारों का भी वर्गीकरण नहीं हो सका है कि किस पिस्सू के काटने से कौन सा संक्रमण होता है! इस संक्रमण का इलाज सामान्य एंटीबायोटिक के जरिये ही किया जाता है.
स्रोत: ऊपर दी हुई जानकारी इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न शोध पत्रों से ली गयी है.