नई दिल्ली. Bihar Voter List Revision यानी Special Intensive Revision (SIR) को लेकर उठा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच — Justice Suryakant और Justice Joymalya Bagchi — उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी जिनमें बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे मतदाता सूची संशोधन को रोकने की मांग की गई है।
Election Commission ने किया SIR का बचाव
Election Commission of India (ECI) लगातार यह तर्क दे रहा है कि SIR प्रक्रिया पूरी तरह वैधानिक है और इससे voter list में transparency आएगी। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक विस्तृत affidavit में कहा कि मतदान का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह Representation of the People Act, 1950 & 1951 और Article 326 of Indian Constitution के तहत मिलता है। अयोग्य व्यक्ति मतदाता नहीं हो सकता, इसलिए वह Article 19 या 21 के उल्लंघन का दावा भी नहीं कर सकता।
NGO का आरोप: लोकतंत्र और free election को खतरा
हालांकि, Association for Democratic Reforms (ADR) नामक एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में दायर counter affidavit में Election Commission के दावों को खारिज किया है। ADR का आरोप है कि:
24 जून 2025 को जारी SIR आदेश अगर रद्द नहीं किया गया तो यह arbitrary और flawed process लाखों वैध मतदाताओं को right to vote से वंचित कर सकता है। यह लोकतंत्र और free & fair elections के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
Aadhaar और Ration Card नहीं मान्य?
ADR ने चुनाव आयोग द्वारा Aadhaar card और Ration card जैसे documents को वैध प्रमाण पत्रों की सूची में शामिल न करने पर भी सवाल उठाए हैं। NGO का कहना है कि आयोग ने इसके पीछे कोई reasonable justification नहीं दिया है।
जमीनी रिपोर्ट में खुलासा: फॉर्म भरने में फर्जीवाड़ा?
ADR ने यह भी आरोप लगाया कि कई इलाकों से मिली रिपोर्टों में BLO (Booth Level Officers) पर गंभीर आरोप लगे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक BLOs बिना मतदाताओं की जानकारी के online forms upload कर रहे हैं। कुछ मतदाताओं ने आरोप लगाया कि उन्होंने कभी किसी BLO से संपर्क नहीं किया और ना ही दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। कुछ मामलों में dead voters के नाम से भी forms upload किए गए हैं। यह पूरे SIR process की credibility पर सवाल खड़े करता है NGO का कहना है।
अब सबकी निगाहें 22 जुलाई सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। यदि अदालत इस प्रक्रिया को रोक देती है, तो यह बिहार चुनाव और अन्य राज्यों में होने वाले electoral reforms पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।