नई दिल्ली. आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार की मांग की है। उन्होंने इमरजेंसी के दौरान 1976 में लागू हुए 42वें संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि ये शब्द मूल संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे और इन पर दोबारा सोचने की जरूरत है।
होसबोले ने सीधे तौर पर कांग्रेस का नाम न लेते हुए कहा कि जिन्होंने आपातकाल थोपा था, वे आज संविधान की बात कर रहे हैं लेकिन कभी माफी नहीं मांगी। उन्होंने कहा कि “जो लोग संविधान को हाथ में लेकर घूमते हैं, उन्हें 1975 में लागू किए गए इमरजेंसी के लिए जनता से क्षमा मांगनी चाहिए।”
‘आपातकाल की मानसिकता वापस न आए’
आरएसएस नेता ने युवाओं को इमरजेंसी के इतिहास से अवगत कराने का आह्वान किया और ABVP जैसे छात्र संगठनों से अपील की कि वे देश के विश्वविद्यालयों में इमरजेंसी के प्रभावों पर अध्ययन सत्र आयोजित करें। उन्होंने बताया कि किस तरह उस दौर में हजारों लोगों को जेल में डाला गया और प्रेस व न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गहरी चोट की गई।
उन्होंने याद करते हुए बताया कि उन्होंने खुद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को बेंगलुरु में गिरफ्तार होते हुए देखा था।
कांग्रेस का कड़ा पलटवार
होसबोले के इस बयान पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। पार्टी ने एक्स (Twitter) पर लिखा कि यह टिप्पणी सिर्फ एक राय नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा पर जानबूझकर किया गया हमला है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आरएसएस और भाजपा की विचारधारा भारतीय संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है और वे लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।