मंडी: नेशनल हाइवे 21 पर मंडी से औट तक का सफर पर खतरा बढ़ गया है. एक तरफ उफनती व्यास नदी है तो दूसरी तरफ भरभरा कर गिरते पहाड़. न तो सरकार आज तक इन दरकते पहाड़ों की रोकथाम की कोई योजना बना पाई है और न ही प्रशासन. धीरे-धीरे नेशनल हाइवे 21 अब खतरों का हाईवे बन गया है.
चंडीगढ़ से मनाली के लिए जाने वाले नेशनल हाइवे 21 पर सफर करना किसी रोमांच से कम नहीं है. लेकिन मंडी से औट तक के बीच का नेशनल हाईवे रोमांच के साथ-साथ रूह कंपा देनी वाली घटनाओं के लिए विख्यात होता जा रहा है. पिछले कुछ समय में इस हाइवे पर पहाड़ों के दरकने की जो घटनाएं सामने आई हैं, उससे यह हाईवे अब खतरों का हाइवे बन गया है.
बरसात के दिनों में इस हाइवे पर लैंडस्लाइड होना आम बात है. कभी बड़ी-बड़ी चट्टानें एनएच 21 पर गिरकर नुकसान पहुंचाती हैं, तो कभी पहाड़ का एक हिस्सा ज़मींदोज होकर बाधा उत्पन्न कर देता है. एनएच के किनारे एक तरफ उफनती ब्यास नदी है तो दूसरी तरफ दरकते पहाड़. एनएच 21 पर वाहनों के व्यास नदी में गिरने या फिर पहाड़ से पत्थर गिरने की घटनाओं ने अब तक कई राहगीरों को मौत की नींद सुला दिया है और गहरे ज़ख्म दिए हैं.
रोजाना इस एनएच पर हजारों की संख्या में वाहन गुजरते हैं. एनएच-21 लाहुल स्पिति, मनाली और कुल्लू जाने का मुख्य रास्ता है. इस हाइवे के माध्यम से औट, थलौट, बालीचौकी, हणोगी, पंडोह और आसपास के दर्जनों गांवों के लोग जिला मुख्यालय तक पहुंचते हैं. स्थानीय लोग सफर के दौरान अमूमन इसी चिंता में रहते हैं कि न जाने कब कौन-सा पहाड़ उनपर आफत बनकर गिर जाएगा.
दरकते पहाड़ों की रोकथाम कैसे की जाए इस दिशा में सरकार और प्रशासन आज तक कोई ठोस योजना नहीं बना पाया है. लोगों को सचेत करने के लिए नेशनल हाइवे के किनारे चेतावनी के बोर्ड लगाए गए हैं ताकि दुर्घटना संभावित क्षेत्रों के पास लोग न रूकें और हादसों से बचा जा सके. लेकिन पर्यटक रूकते ही उन स्थानों पर हैं जहां इस प्रकार के बोर्ड लगाए गए होते हैं.
एसडीएम सदर पूजा चौहान से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने बताया कि प्रशासन जल्द ही एक टीम बुलाने जा रहा है, जो इस बात का पता लगाएगी कि दरकते पहाड़ों की रोकथाम कैसे की जाए. इस टीम में जूलॉजी विभाग के एक्सपर्ट भी होंगे और आइआइटी मंडी के एक्सपर्ट भी.
कुल मिलाकर मौजूदा समय में नेशनल हाइवे 21 पर सफर करना खतरे से खेलना और यह खतरा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इन पहाड़ियों के बीच से होकर फोरलेन की जो टनलें बनेंगी उनसे पहाड़ों की स्थिरता और भी कम हो सकती है. विकास का यह मॉडल भविष्य में खतरों के हाइवे को और ज्यादा खतरनाक बना सकते हैं.