एक बार ग़ालिब के पास पैसों की बेहद कमी हो गयी। बीबी उमराव बेगम से मांग बैठे तो वो बोलीं – नमाज पढ़ो तो मुराद पूरी होगी। फिर क्या था, ग़ालिब गली कासिमजान, बल्लीमारान वाले अपने मकान से निकलकर सीधे जामा मस्जिद पहुँचे, वजू किया और सुन्नतें पढ़ने के लिए बैठ गए।
इधर ग़ालिब साहब मस्जिद पहुंचे उधर एक शागिर्द अपनी शायरी ठीक कराने उनके घर पहुंच गए। जब शागिर्द को पता चला की ग़ालिब साहब मस्जिद गए हैं तो उसने शराब की एक बोतल खरीदी और उसे कोट के भीतर छिपा कर वो भी मस्जिद पहुंच गया और ग़ालिब को देखते ही उन्हें आवाज़ देकर कोट की अंदर की जेब की ओर धीरे से इशारा किया।
अब क्या ! मियाँ ग़ालिब ने तुरंत अपनी जूतियां उठायी और चल पड़े। उनको निकलता देख एक पड़ोसी बोले- मियाँ ग़ालिब, जिंदगी में पहली बार तो आप मस्जिद में आए हैं, कम से कम फर्ज तो पढ़ लीजिये। ग़ालिब बोले- ‘हुज़ूर, अभी वाला काम तो सुन्नतों से ही हो गया, अब अल्लाह को और तंग करना मुनासिब नहीं।’ (: साभार)
वो हमसे पूछते हैं कि गालिब कौन है, तुम्हीं बताओ कि हम बतलाएं क्या…अजीम-ओ-शान शायर मिर्जा गालिब का आज 220वां जन्मदिवस है. वह उर्दू एवं फारसी के भाषाविदों के अलावा शेरो-शायरी के किसी भी चाहने वाले के लिए मिर्जा गालिब का नाम किसी परिचय का मेाहताज नहीं. असदुल्लाह खां गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था. आज उनके सम्मान में गूगल ने भी गूगल डूडल बनाकर उनको याद किया है.
आम आदमी का शायर – मिर्जा गालिब
मिर्जा गालिब को आम आदमी का शायर भी कहा जाता है क्योंकि हम रोजाना की जिंदगी में कई ऐसी बातें और शेर बोल जाते हैं जो हमें उन्हीं की देन हैं. ऐसा माना जाता है कि जिस वातावरण में गालिब का लालन-पालन हुआ. वहां से उन्हें शायर बनने की प्रेरणा मिली. जिस मोहल्ले में गालिब रहते थे, वह (गुलाबखाना) उस जमाने में फारसी भाषा के शिक्षण का उच्च केन्द्र था.


13 वर्ष की उम्र में उनका निकाह नवाब इलाही बक्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया. इसके बाद वह अपने छोटे भाई मिर्जा युसूफ खान के साथ दिल्ली में बस गये. लेकिन उनके छोटे भाई की एक दिमागी बीमारी की वजह से छोटी उम्र में ही मौत हो गयी.
बॉलीवुड ने भी बनाई थी फिल्म
बॉलीवुड में सोहराब मोदी की आई फिल्म ‘मिर्जा गालिब (1954)’ यादगार थी. इस फिल्म में अभिनेता भारत भूषण मुख्य किरदार निभाया था. टेलीविजन पर गुलजार का बनाया गया टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब (1988)’ सबके जेहन में रच-बस गया. टीवी पर नसीरूद्दीन शाह ने गालिब को छोटे परदे पर जिंदा किया. उनकी ऐसे शेर जो हम रोजाना की जिंदगी में इस्तेमाल तो करते हैं. लेकिन जानते नहीं ये गालिब की ही देन है.
जामा मसजिद के पीछे गली कासिमजान में संरक्षित है गालिब की हवेली
जामा मसजिद के पीछे बल्लीमारान में मिर्जा गालिब की पुरानी हवेली अब संरक्षित कर दी गई है. दिल्ली सरकार ने साल 2010 में इसकी सुधि ली थी. इसके बाद उसे धरोहर घोषित कर दिया गया. यहां मिर्जा साहब के पुराने कपड़े, उनकी चौसर और शतरंज, पुरानी मूर्तियां और उनकी बेगम के कपड़े भी सुरक्षित रखे गए हैं. यूं सुनसान रहने वाली इस हवेली में गाहे-बगाहे कुछ पर्यटक भी पहुंच जाते हैं.
