26 साल की उम्र में, आचार्य विनोव भावे ने उन्हें एक आधुनिक दिन का ‘सिद्धार्थ’ कहा था. वी.पी.सिंह जी ऐसे व्यक्तिवव के धनी थे जोकि मतभेदों के बावजूद भी हमेशा सभी को साथ लेकर चलने में यकीन रखते थे. देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे. और पिछड़ों और शोषित वर्ग के लिए उनके किए गए काम याद किए जाते हैं.
उनके ही प्रधानमंत्री कार्यकाल में मंडल आयोग, निगमों को पर नियत्रण और भ्रष्टाचार का उन्मूलन आदि लागू हुआ था. इसीलिए इनको ‘समाजवाद 2.0’ और ‘सामजिक न्याय का मसीहा’ कहा जाता है. वी.पी. सिंह पर कमजोर प्रधानमंत्री होने के आरोप भी लगे लेकिन उन्होंने देश को एकजुट और व्यवस्थित करने की अहम भूमिका निभाई. वह एक बुजुर्ग राजनेता थे जिन्होंने सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की शक्तियों को एकजुट कोशिश
की.
भ्रष्टाचार के खिलाफ 1987 में वी.पी. सिंह ने एक नया राजनीतिक संगठन ‘जन मोर्चा’ का गठन किया और ‘जनता दल’ की भी स्थापना की, 11 अक्टूबर 1988 को जनमोर्चा, चन्द्र शेखर, लोक दल और कांग्रेस (एस) की अगुआई में जनता पार्टी का एक दल विलय हो
गया. भ्रष्टाचार से लड़ने की पार्टी के रूप में नवगठित जनता दल पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया. वीपी सिंह ने डीएमके (तमिलनाडु), तेलगु देशम पार्टी (आंध्र प्रदेश) और असम गण परिषद (असम) जैसे दलों के साथ 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए ‘नेशनल फ्रंट’ नामक एक गठबंधन का गठन किया. हालांकि वी.पी. सिंह
चुनावों के दौरान भाजपा का समर्थन चाहते थे, लेकिन वे उनके साथ हिन्दुवाद कि विचारधारा पर दूरी बनाए रखना चाहते थे. इनका प्रमुख कार्य आंतरिक और बाह्य दोनों रूप से ‘पिछड़े वर्ग के ‘वोट बेस’ को सश्क्त बनाना था. इसीलिए उन्होंने 7 अगस्त 1990 को,
मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के आदेश जारी किए.
इसके कारण ओबीसी को केंद्र सरकार की सभी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश में 27% आरक्षण दिया गया था. आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए ये भी कहा जा सकता है कि दलित-ओबीसी-आदिवासी-मुस्लिम राजनीतिक भागीदारी के साथ बहुत सारी असफलताएं भी थीं जिन में राम मंदिर मुद्दा, खराब अर्थव्यवस्था, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट एवं ‘ऋण बकाएदारों’ की सूची में फिसलना आदि थी और ये मुद्दे अगले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के लिए प्रमुख चुनौती थींं.