नई दिल्ली. ‘ किसानों की आय अगर बढ़ाना है तो उन्हें शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को अपनाना होगा. यही वह तरीका है जिससे देश की कृषि और किसानों की दशा सुधरेगी. ‘ जीरो लागत यानि शून्य लागत कृषि के जन्मदाता पद्मश्री सुभाष पालेकर आजकल अपने इस मिशन पर लगे हुए हैं. ऐसे में वह 15 फरवरी को शिमला में किसानों को प्रशिक्षण देंगे. इस कार्यक्रम में हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, कैबिनेट मंत्री, विधायक, जनप्रतिनिधि, प्रदेश के सभी जिलों के किसान, बागवान, पशुपालक व अन्य संबंधित विभागों के लोग मौजूद रहेंगे.
किसान प्राकृतिक खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैंं
देश-दुनिया में जीरो बजट खेती के तरीके के लिए प्रसिद्ध सुभाष पालेकर ने ‘ पंचायत टाइम्स ‘ को बताया कि देश में हरित क्रांति के नाम पर अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों, हानिकारक कीटनाशकों, हाईब्रिड बीजों और अत्यधिक भूजल के दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है. रासायनिक खेती के इस तरीके से किसानों की लागत बढ़ रही और वह कर्ज में डूब रहे हैं, ऐस में बिना लागत के किसान प्राकृतिक खेती करके अपनी आय बढ़ा सकें इसके लिए देश में जीरो लागत प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए मिशन पर वह निकले हैं.
शून्य लागत प्राकृतिक कृषि ही विकल्प
उन्होंने बताया कि किसान कृषि की बढ़ती लागत, खेत के लिए बाजार पर पूरी तरह निर्भरता और सरकार की कृषि के प्रति उदासीन नीति के कारण खेती छोड़ रहे हैं और आत्महत्या तक करने पर मजबूर हैं. सुभाष पालेकर ने बताया कि ऐसे में किसानों को ऐसी कृषि पद्धति अपनाने की जरुरत है जो किसान को बाजार के शोषणकारी व्यवस्था से बचाय जा सके. किसानों को बाजार से खेती करने के लिए कुछ भी खरीदना न पड़े इसके लिए शून्य लागत प्राकृतिक कृषि ही विकल्प है. सुभाष पालेकर कहा कि देश के विभिन्न भागों में शून्य लागत कृषि का माडल अपनाकर किसान अपनी आय बढ़ाने के साथ ही अच्छा अन्न पैदा कर रहे हैं. यह अन्न जो पूरी तरह विषाक्त और रासायनिक तत्वों से मुक्त है.
कृषि ऋषि कहे जाते हैं सुभाष पालेकर
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अमरावती जिले के मूलरूप से रहने वाले सुभाष पालेकर को देश में जीरो लागत यानि शून्य लागत कृषि का जन्मदाता कहा जाता है. सुभाष पालेकर ने कृषि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने गांव में एक किसान के रूप में 1973 से लेकर 1985 तक खेती की, लेकिन आधुनिक और रासायनिक खेती करने के बाद भी जब उत्पादन नहीं बढ़ा तो चिंता होने लगी. इसके समाधान के लिए जंगलों की तरफ चले गए. जंगल में जाकर उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ कि बिना मानवीय सहायता के हरे-भरे जंगल खड़े हैं, यहां के इनके इनके पोषण के लिए रासायनिक उर्वरक कौन डाल रहा है ? जब यह बिना रासायनिक खाद के खड़े रह सकते हैं तो हमारे खेत क्यों नहीं ? इसी को आधार बनाकर उन्होंने बिना लागत की खेती करने का अनुसंधान शुरू किया. सुभाष पालेकर 15 सालों के गहन अनुसंधान के बाद एक पद्धति विकसित की, जिसको शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का नाम दिया.
2016 में भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री सम्मान से अलंकृत किया
वह पिछले 20 सालों से लगातार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की खेती का प्रशिक्षण देने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गए हैं. आज इस पद्धति को अपनाकर लाखों को बिना लागत के खेती से अपनी आय बढ़ाते हुए मुनाफा कमा रहे हैं. देश की कृषि में सुभाष पालेकर के इस योगदान को देते हुए साल 2016 में भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री सम्मान से अलंकृत किया. आंध्रप्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने उन्हें अपने राज्य का कृषि सलाहकार बनाया है साथ ही एक शून्य लागत प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय बनाने की भी घोषणा की है.
कृषि वैज्ञानिक के साथ ही संपादक भी हैं
किसानों के बीच कृषि ऋषि के रूप में पहचाने जाने वाले सुभाष पालेकर का अधिकतर समय किसानों के प्रशिक्षण शिविर में बीतता है. सबसे खास बात यह है कि वह किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं. सुभाष पालेकर एक कृषि वैज्ञानिक के साथ ही संपादक भी हैं वह 1996 से लेकर 1998 तक कृषि पत्रिका का संपादन भी कर चुके हैं. साथ ही हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी सहित कई भाषाओं में 15 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं. सुभाष पालेकर की तरफ से विकसित भू-पोषक द्रव्य ”जीवामृत ” पर आईआईटी दिल्ली के छात्र शोध भी कर रहे हैं.