कच्छ/राजकोट. गुजरात चुनाव के पहले चरण में शाम पांच बजे तक लगभग 68 प्रतिशत मतदान हुआ, जो कि 2012 के चुनाव में हुए मतदान (71 प्रतिशत) से थोड़ा कम रहा। मतदान प्रतिशत (वोटर टर्न आउट) के कम रहने की अलग-अलग तरह से व्याख्या हो रही है। कुछ जानकारों का मानना है कि अगर वोटर टर्न आउट पहले की तुलना में बढ़े तो उसे सत्ता विरोधी लहर के तौर पर देखा जाता है, और सरकार बदल जाती है। 2014 लोकसभा चुनाव और इसी साल उत्तर प्रदेश के चुनाव में ये देखने को भी मिला. लेकिन हर बार ऐसा हो उसकी गारंटी नही. 2012 के गुजरात चुनाव को ही देखें तो 2007 की तुलना में 11 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ लेकिन सरकार नही बदली.
ऐसा भी देखा गया है कि पहले की तुलना में अगर कम मतदान हुआ है तो सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा होता है. इसके पीछे ये तर्क माना जाता है कि कम मतदान का मतलब है कि लोगों में वर्तमान सरकार के खिलाफ कोई विशेष गुस्सा नही है या फिर विपक्षी पार्टी मतदाताओं में कोई जोश नही जगा पायी. गुजरात में ही 2002 के मुकाबले 2007 में वोटर टर्न आउट में 2 प्रतिशत की गिरावट हुई थी और फिर से भाजपा ने सरकार बनायी थी. इस आधार पर एक बार फिर गुजरात मे लगातार छठी बार बीजेपी की सरकार बनने की संभावना जताई जा रही है.
बहरहाल, गुजरात चुनाव का परिणाम जो भी हो लेकिन मतदान के दिन हमने गुजरात के ही कच्छ जिले के कुछ गांवों में लोगों से बात की. इसके अलावा राजकोट जिले के एक गांव के लोगों से भी हमारी बात हुई. उस गांव में हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 27 नवंबर को हुई रैली से पहले गए थे और एक बार फिर मतदान की पूर्व संध्या पर वहां दुबारा गए ताकि ये जान सकें कि पहले चरण का चुनाव प्रचार ख़त्म होने के बाद लोगों के विचारों में कुछ परिवर्तन हुआ है या नहीं? शुरू करते हैं कच्छ जिले से:
शाम 5 बजे के पास रापड़, कच्छ जिले के एक गांव में कुछ लोग चबूतरे पर बैठे थे. हमने उनसे बात करनी शुरू की. उनका मानना था कि यह चुनाव 50-50 है. उन्होंने वहीं वोट किया था जहां वो पहले करते थे यानी बीजेपी को. कुछ मिनट बात करने के बाद एक गाड़ी आयी, उस व्यक्ति ने हमे बताया कि आप इनसे (गाड़ी चला रहे व्यक्ति से) बात कीजिये, वो ज्यादा बता पाएंगे. वो हमारे जानकार हैं और विधायक के नजदीकी है (वर्तमान विधायक बीजेपी से है).
हमने गाड़ी वाले व्यक्ति से बात की. उनका मानना था कि ये सीट वो 5000 से 8000 वोट से जीत जाएंगे, और राज्य में इस बार भी बीजेपी की सरकार बन जाएगी, हाँ सीटें जरुर कुछ कम हो जायेंगी. लौटते हुए हमने फिर गाँव के कुछ और लोगों से बात की और पूछा कि इस बार क्या स्थिति रहेगी चुनाव में? उन्होंने कहा, ये सीट मुश्किल है, क्योंकि बहुत लोगों ने कांग्रेस को वोट दे दिया. मैंने पूछा- “और आपने कहाँ वोट दिया”? ‘कांग्रेस’ उनका जबाब था.
अब बात राजकोट के उस गाँव की जहाँ हम पिछले महीने की 26 तारीख को गए थे. उस गांव के लोग अपनी खराब आर्थिक स्थिति के चलते सरकार से नाराज़ थे. गाँव वालों में अधिकाँश किसान थे जो अलग अलग जातियों से थे. वो सभी पहले बीजेपी को वोट करते थे लेकिन इस बार कांग्रेस को वोट करने का मन बनाये हुए थे. क़त्ल की रात यानी वोटिंग वाले दिन की पूर्व संध्या पर हम फिर से उस गांव में गए और जानने की कोशिश की कि कहीं चुनाव प्रचार ख़त्म होते होते उनका मन तो नहीं बदल गया. जबाब नही में मिला. आज शाम को फिर से उनमें से किन्ही को फ़ोन मिलाया, जबाब मिला कि वोट वहीँ दिया जहाँ पहले तय कर लिया था, यानि कांग्रेस को.
मगर ऐसा एकदम नही है कि हमें कोई ऐसा व्यक्ति नही मिला हो जिसने बीजेपी को वोट दिया हो. बहुत सारे ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने खुल कर कहा कि वो बीजेपी को वोट दिया है. हाँ इतना जरुर था कि उनमें से कोई ऐसा नही था जो पहले कांग्रेस को वोट देता रहा हो और इस बार बीजेपी के पक्ष में चला गया हो. ये तीन उदहारण यहां देने का यह मतलब बिलकुल नही है कि कांग्रेस जीत रही है. वैसे भी कुछ उदाहरणों के द्वारा एक राज्य के चुनाव की भविष्यवाणी करना इतना आसान नही है, वो भी उस राज्य में जहां पर सत्तारूढ़ पार्टी पिछले 22 सालों से शासन में हो, विपक्ष का संगठन कमजोर हो और देश के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के चुनावी चाणक्य माने जाने वाले राष्ट्रीय वहीँ से आते हों.
कौन सी पार्टी इस चुनाव में बाजी मारेगी ये तो 18 दिसंबर को पता चल जाएगा, लेकिन सिर्फ टर्न आउट के आधार पर इस चुनाव की भविष्यवाणी करना शायद जल्दबाजी होगी. चलते चलते एक आखिरी बात; गुजरात मे ही 1980 के चुनाव में 1975 के विधानसभा चुनाव की तुलना में मतदान में 12 प्रतिशत की गिरावट आई थी. लो टर्न आउट वाले नियम के अनुसार मौजूदा सरकार को टिकना चाहिए था लेकिन इसके उलट सरकार बदल गयी थी.
लेखक अशोका यूनिवर्सिटी में रिसर्च फेलो हैं और देश के कई राज्यों में चुनाव विश्लेषण का काम कर चुके हैं.