नई दिल्ली. एक समय की बात है जब नर्मदा नदी में दो लड़कियां डूब रहीं थी, उन्हें बचाने के लिए अचानक से एक महिला अपनी जान की परवाह किए बिना नदी में कूद जाती हैं और दोनों डूबती लड़कियों को नदी से बाहर निकाल लाती हैं. वही महिला बाद में अपनी प्रतिभा के बल पर गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री, आनंदी बेन पटेल बन जाती हैं. आज व्यक्ति विशेष के अंक में हम उसी निडर महिला का जीवन आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं.
आनंदी का जीवन आश्चर्यों से भरा हुआ
सरदार पटेल के बाद गुजरात के लौह पुरुष यानि कि ‘आयरन मैन’ अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहा जाता है तो उसी तरह ‘आयरन लेडी’ का खिताब आनंदी बेन पटेल को दिया जाता है. एक गांधीवादी परिवार के घर जन्मी और स्कूल टीचर से राजनीति के क्षेत्र में आने वाली महिला का जीवन आश्चर्यों से भरा हुआ है. आनंदी राजनीति की शुरुआत से ही मोदी के काफी नजदीक रहीं. जिस वक्त शंकर सिंह वाघेला ने भाजपा में विद्रोह कर दिया था उस वक्त भी आनंदी ने मोदी का साथ नहीं छोड़ा.
आनंदी की बेटी अनार क्या कहती हैं
मोदी और आनंदी बेन के रिश्ते की बात करते हुए आनंदी की बेटी अनार पटेल कहती हैं कि ‘मोदी और आनंदीबेन के बीच गुरू और चेले जैसा रिश्ता है’. अनार कहती हैं कि उन्होंने मोदी चाचा से बहुत कुछ सीखा है और उनका वह बहुत आदर करती हैं. आनंदी के दो बच्चे हैं. बेटा का नाम संजय और बेटी का नाम अनार है. काफी साल पहले ही आनंदी अपने पति मफतभाई पटेल से अलग हो गई हैं.
शिक्षा मंत्री आनंदीबेन पटेल
जब मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ रुख किया. उस समय गुजरात भाजपा में मानों मुख्यमंत्री बनने की रेस लग गई हो. उसके बाद जब नाम आता है आनंदी बेन पटेल का तो सब हक्के-बक्के रह जाते हैं. गुजरात में उनसे पहले किसी महिला को इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी. यह और बात है कि उनकी राजनीति की शुरुआत में ही उन्हें राज्यसभा का मेंबर बना दिया गया. उसके बाद गुजरात के 1998 विधानसभा चुनाव में मांडक से बतौर विधायक चुन कर आईं. उसके बाद केशुभाई पटेल की सरकार में उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया.
क्या हैं उपलब्धियां
आनंदी बेन पटेल को मोदी की गुजरात सरकार में शिक्षा मंत्री के बाद शहरी विकास और राजस्व मंत्री का जिम्मा भी सौंपा गया था. इसके साथ ही वह कई और समितियों की भी अध्यक्ष थीं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि टाटा नैनो को जमीन देने की बात हो या नर्मदा नहर के लिए किसानों से जमीन लेने का काम हो कई अहम कामों के पीछे आनंदी का हांथ है. ई-जमीन कार्यक्रम, जमीन स्वामित्व डाटा और जमीन को कंप्यूटरीकृत करके जमीन के सौदों में होने वाली धांधली को रोकना हो इन सब कामों का श्रेय आनंदी बेन को ही जाता है.
क्यों गई कुर्सी!
पटेलों के आरक्षण के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया. जिसके परिणाम स्वरूप आनंदी को 1 अगस्त 2016 को अपना इस्तीफा देना पड़ा. महज डेढ साल के लिए ही वह मुख्यमंत्री के पद पर रहीं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि विद्यालीय शिक्षा के दौरान एथलेटिक्स में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए उन्हें “वीर बाला” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके साथ ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार, गुजरात में सबसे बेहतर शिक्षक के लिए राज्यपाल पुरस्कार, वीरता पुरस्कार जैसे कई सफलताओं को पाने वाली नेत्री अब 76 साल की हो गई हैं. लेकिन गुजरात की राजनीति में अभी भी उनकी धमक सुनाई पड़ती है, दिखाई पड़ती है.