शिमला. अनदेखी झेल रही प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों का रखरखाव अब नियमित रखा जाएगा. कोई धरोहर अब अनदेखी का शिकार नहीं होगा. प्रदेश की संस्कृति और धरोहर को पर्यटन से जोड़ने के लिए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. राजा-रजवाड़ों से लेकर अंग्रेजी शासनकाल के दौर तक के पुराने महलों और हवेलियों को संजोए रखने के लिए सरकार हिमाचल हेरिटेज टूरिज्म पॉलिसी लेकर आई है.
हाल में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में हेरिटेज नीति को सरकार की मंजूरी मिली है. हालांकि अभी नीति में क्या क्या होगा, कौन-कौन सी संपत्ति इसके तहत आएगी, इसके पूरे प्रारूप को लेकर अधिसूचना जारी होनी शेष है. हेरिटेज संपत्ति की यदि बात करें तो हिमाचल की राजधानी शिमला में ही 250 हेरिटेज संपति है, जिनमें अधिकांश ब्रिटिशकालीन भवन है और अधिकतर सरकारी है.
पूरे प्रदेश की यदि बात करें तो हजार से अधिक धरोहर है जिनमें परागपुर जैसे पूरे गांव के गांव ही हेरिटेज घोषित हुए है. इसके अलावा किले व मंदिरों की संख्या सैंकड़ों में है. हेरिटेज पोलिसी के तहत रियासतों से ब्रिटिश राज की धरोहरों, जिसमें भवन, किले, महल, लॉज और हवेलियां किसी न किसी इतिहास से जुड़ी हैं, उनका निरंतर रखरखाव करना शामिल है. इससे राज्य में पर्यटन गतिविधियों के लिए नए क्षेत्र विकसित होंगे.
इस नीति का मकसद पर्यटकों को रियासत काल की जीवनशैली, परंपराओं और ब्रिटिश काल की वास्तुकला की भव्यता की झलक प्रस्तुत करना और उन्हें इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी देना है.
रखरखाव को मिलेगी 50 फीसदी राशि
हेरिटेज इमारतों के रखरखाव के लिए प्रदेश सरकार भवन या महल मालिक को पचास फीसदी तक राशि उपलब्ध कराएगी. जिससे उस विरासत को संजोकर रखा जाएगा. जानकारी के मुताबिक इस नीति को सरकार ने राजस्थान के महलों के संरक्षण की तर्ज पर लागू किया है. इस नीति का सीधा फायदा प्रदेश के राजघरानों के लोगों को मिलेगा. ऐसे में जब ज्यादातर राजघरानों के सदस्य राजनीति में हैं. इस नीति के राजनीतिक मायने भी अभी से निकाले जाना शुरू हो गए हैं. बताया जा रहा है कि इस पॉलिसी का सीधा लाभ प्रदेश के गिने चुने लोगों को ही मिलेगा.