शिमला. हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार चरम पर पहुंच गया है. हर ओर प्रचार का शोर, कहीं रैलियां कहीं जनसभाएं, कहीं नुक्कड़ सभाएं. हर कोई खुद को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने में जुटा है. भाजपा की ओर से प्रदेश के नेता तो थे ही. इसके साथ ही खुद पीएम मोदी 7 रैलियां करने वाले हैं. अमित शाह की 17, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, रवि शंकर प्रसाद, थावर चंद गहलोत, योगी आदित्य नाथ, जेपी नड्डा, प्रकाश जावड़ेकर, पीयूष गोयल, शाहनवाज हुसैन न जाने कौन कौन सब पूरी ताकत झोंक रहे हैं.
सत्ता की इस ललक के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं. गूगल, यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, अखबार, न्यूज चैनल, पोस्टर, होर्डिंग, झंडे, डंडे, मंच, मदिरा, धाम हर ओर बस भाजपा ही भाजपा. निशाने पर है वीरभद्र सिंह. जनहित का एक भी मुद्दा नहीं केवल वीरभद्र को निशाना बनाकर वार किए जा रहे हैं.
रात दिन एक कर रहे हैं वीरभद्र
भाजपा के इतने नेताओं के मुकाबले अकेले वीरभद्र सिंह मोर्चा संभाले हुए हैं. वीरभद्र सिंह भले ही 84 के हो गये है लेकिन वह जिस तरह गांव-गांव शहर शहर घूम कर प्रचार कर रहे हैं. मतदाताओं को अपनी ओर रिझाने के लिये रात और दिन एक कर रहे हैं. कांग्रेस के पास भी भुनाने के लिए वीरभद्र के अलावा कोई और चेहरा नजर नहीं आता.
वहीं नारा है हिमाचल प्रदेश के विकास का जो 5 वर्षों के अपने कार्यकाल में किया. निशाना है मोदी सरकार जो लगातार उन पर आक्रमण कर रही है. तीसरी ओर है कांग्रेस पार्टी जो वीरभद्र सिंह के साथ नहीं. टिकट आवेदन हो, टिकट वितरण हो या फिर प्रचार, हर ओर से पार्टी ने वीरभद्र सिंह को आगे रखा है. केंद्र से जो बड़े नाम के नेता आ भी रहे हैं .वह सिर्फ कांग्रेस कार्यालय शिमला पहुंचकर प्रेसवार्ता कर अपनी हाजिरी भर रहे हैं.
दल-बदलुओं की सक्रियता, जनता को 9 नवंबर का इंतजार
चुनावी बिगुल बजने के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई. टिकट के लिए जुगाड़ लगाने का सिलसिला, टिकट कटने पर निर्दलीय या दूसरी पार्टी का दामन थामने की तैयारी. दल बदलुओं का दौर चला. बगावत कर नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया. बड़े पदों पर बैठे नेताओं को अचानक एहसास हुआ कि उनके साथ अन्याय हुआ और जनता के साथ भी. जनता भी मौन होकर हर हलचल पर नजर बनाए हुए है. उसे 9 नवंबर का इंतजार है.