नई दिल्ली. इस वक्त हिमाचल में राजनीति का महायुद्ध देखने को मिल रह है. प्रधानमंत्री खुद युद्ध में सेनापति बन कर सामने आ गए हैं. इस राजनीतिक गहमागहमी से हम आपको बहुत दूर लिये चलते हैं और बतलाते हैं उस इंसान की कहानी जिसे कहा जाता है ‘हिमाचल निर्माता’. आइये जानें की कौन थे हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री, जिन्होंने हिमाचल की 30 रियासतों को भारत में मिलवाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.
डाॅ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने हिमचाल में विकास की नींव रखी था. 1906 में जन्में स्वतंत्रता सेनानी ने सिरमौर के एक छोटे से गांव चनालग में जन्म लिया. उन्होंने लखनऊ से एलएलबी और समाजशास्त्र में पीएचडी की थी. सिरमौर में जन्मे परमार सिरमौर की रियासत में 11 साल तक सब जज और मजिस्ट्रेट रहे. उसके बाद न्यायाधीश के रुप में 1937-41 के रूप में अपनी सेवाए दी.
हिमाचल के बनने की कहानी
वह नौकरी की परवाह ना करते हुए सुकेत सत्याग्रह प्रजामंडल से जुड़े. उनके ही प्रयासों से यह सत्याग्रह सफल हुआ. परमार के प्रयासों से ही 15 अप्रैल 1948 को 30 रियासतों का विलय हो सका. जिसके बाद कहीं जाकर हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया. उसके बाद 25 जनवरी 1971 को इस प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला. 1963 से 24 जनवरी 1977 तक हिमाचल के मुख्यमंत्री बनकर प्रदेश को संवारने का काम करते रहे. बता दें कि मुख्यमंत्री बनने से पहले उन्हें 1957 को सांसद बनने का भी मौका मिला था.
किताबें भी लिखते थे परमार
आपको बतादें कि उन्होंने हिमाचल को केंद्र में रख कर कई पुस्तकें भी लिखी. जैसे पालियेन्डरी इन द हिमालयाज, हिमाचल पालियेन्डरी इट्स शेप एण्ड स्टेटस, हिमाचल प्रदेश केस फॉर स्टेटहुड और हिमाचल प्रदेश एरिया एण्ड लेंगुएजिज. पूरा जीवन हिमाचल के लिये खपाने के बाद 2 मई 1981 को हिमाचल को हमेशा के लिये अलविदा कह गए.
परमार के परिवार की राजनीति
हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के पोते व पूर्व कांग्रेसी विधायक कुश परमार के पुत्र चेतन परमार बीजेपी में शामिल हो गए हैं. जिससे राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई है. दरअसल चेतन, नाहन सीट से कांग्रेस के टिकट की मांग कर रहे थे. टिकट ना मिलने से नाराज चेतन परमार भाजपा का दामन थाम लिया है.
कांग्रेस वाईएस परमार का योगदान भूल गई
चेतन परमार ने आरोप लगाया कि आज कांग्रेस पार्टी हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार का योगदान भूल गई है. शायद यही कारण है कि उनके परिवार को नजर अंदाज किया जा रहा है. वहीं उन्होंने माना की टिकट ना मिलने के कारण परमार परिवार नाराज चल रहा है. परमार परिवार की बीजेपी में शामिल होने से राजनीतिक सरगर्मियां और तेज गई हैं. देखने वाली बात होगी कि आगामी चुनाव में कांग्रेस को इससे कितना नुकसान और भाजपा को उससे कितना फायदा मिलेगा.