नई दिल्ली. 26 नवंबर, संविधान दिवस के मौके पर भारत के संविधान निर्माता और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा का पेरिस स्थित UNESCO मुख्यालय में अनावरण किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक क्षण को “अत्यंत गर्व का विषय” बताया और कहा कि यह डॉ. आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स (X) पर पोस्ट करते हुए लिखा—
“यह भारत के लिए गर्व का क्षण है कि संविधान दिवस पर पेरिस स्थित UNESCO मुख्यालय में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण हुआ। यह उनके योगदान और संविधान निर्माण में उनकी भूमिका को समर्पित एक उचित सम्मान है। उनके विचार और आदर्श आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा और शक्ति देते हैं।”
UNESCO में इतिहास रचने वाला सम्मान
भारत की स्थायी प्रतिनिधि टीम द्वारा ‘भारत रत्न’ डॉ. आंबेडकर की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस प्रतिमा को मशहूर मूर्तिकार नरेश कुमावत ने तैयार किया है। कार्यक्रम में UNESCO की महासचिव ऑड्री अज़ूले और कई वरिष्ठ राजनयिक उपस्थित रहे।
इस स्थापना के साथ डॉ. आंबेडकर, महात्मा गांधी के बाद दूसरे भारतीय नेता बन गए हैं जिनकी प्रतिमा UNESCO के Garden of Peace में लगी है। यह स्थान दुनिया के महान मानवाधिकार नेताओं—नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर—की प्रतिमाओं के साथ साझा किया जाएगा।
आंबेडकर के विचारों पर वैश्विक सम्मान
कार्यक्रम के दौरान भारत के स्थायी प्रतिनिधि Vishal V. Sharma ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करते हुए समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना को मजबूत किया।
UNESCO ने भी इस स्थापना को मानवाधिकार और जातीय भेदभाव के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता से जुड़ा महत्वपूर्ण कदम बताया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मान्यता
UNESCO में प्रतिमा की स्थापना से पहले भी डॉ. आंबेडकर को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिल चुका है—
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (न्यूयॉर्क)
ब्रिटिश संसद (लंदन)
कोलंबिया यूनिवर्सिटी (USA)
ये वे स्थान हैं जहां डॉ. आंबेडकर के विचारों और संविधान के योगदान को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है।
क्यों मनाया जाता है संविधान दिवस?
2015 से हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1949 में संविधान को अपनाया गया था, जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ।
भारत का संविधान आज भी दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है और देश को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है।
यह ऐतिहासिक अवसर सिर्फ एक प्रतिमा का अनावरण नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और डॉ. आंबेडकर के वैश्विक प्रभाव की स्वीकृति भी है।
