नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में एक मिसाल कायम करते हुए न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका ने शुक्रवार को अपने आखिरी कार्यदिवस पर 11 फैसले सुनाए। आमतौर पर SC Judges रिटायरमेंट के दिन फैसले नहीं सुनाते, लेकिन जस्टिस ओका ने इस परंपरा को तोड़ते हुए अपने सिद्धांतों पर खरे उतरने का फैसला किया।
मां के निधन के एक दिन बाद निभाया न्यायिक कर्तव्य
गुरुवार (22 मई) को जस्टिस ओका की मां का निधन हो गया था। वह अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए Mumbai गए और फिर उसी रात Delhi लौट आए ताकि अपने आखिरी कार्यदिवस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल हो सकें।Justice Oka कहा कि मैं रिटायरमेंट शब्द से नफरत करता हूं। आखिरी दिन भी जज को Bench पर बैठना चाहिए।
11 फैसले सुनाए, फिर बने Symbolic Bench का हिस्सा
शुक्रवार को उन्होंने multiple courtrooms में बैठकर 11 फैसले सुनाए और अंत में Chief Justice D.Y. Chandrachud के नेतृत्व वाली प्रतीकात्मक बेंच (Symbolic Bench) में भी शामिल हुए। यह परंपरा रिटायर हो रहे जज को सम्मान देने के लिए निभाई जाती है। Supreme Court में Farewell Ceremony के दिन जज आमतौर पर सिर्फ सम्मान कार्यक्रम में भाग लेते हैं, लेकिन Justice Oka ने कहा कि Retiring Judge को भी 4 बजे तक काम करना चाहिए।
District Court से SC तक का प्रेरणादायक सफर
Justice Oka का करियर भारतीय न्यायपालिका में dedication और perseverance की मिसाल है,1983: Bombay University से Law की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की शुरुआत District Court, Thane: अपने पिता श्रीनिवास ओका के चेंबर से शुरू की प्रैक्टिस 29 अगस्त 2003: मुंबई हाईकोर्ट में अस्थायी जज के रूप में नियुक्ति 2005: Permanent Judge बने 10 मई 2019: मुख्य न्यायाधीश, कर्नाटक उच्च न्यायालय 31 अगस्त 2021:न्यायाधीश, भारत का सर्वोच्च न्यायालय उनका कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट में करीब चार वर्षों का रहा।
Duty Comes First – Justice Oka का न्याय के प्रति समर्पण प्रेरणा है
Justice Abhay Oka का यह कदम बताता है कि Judicial Integrity का मतलब केवल कुर्सी पर बैठना नहीं, बल्कि हर स्थिति में न्याय को प्राथमिकता देना है। मां के निधन के बावजूद अंतिम कार्यदिवस पर बेंच में बैठना और 11 फैसले देना केवल एक Judge’s Commitment ही नहीं, बल्कि न्यायपालिका के प्रति उनकी आस्था का परिचायक है।