कुल्लू. हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी की मनोरम वादियां इन दिनों नशे के काले कारोबार का गढ़ बन गई है. साल दर साल फल फूल रहे इस कारोबार में न केवल स्थानीय लोग जुड़े हैं बल्कि यह सात संमदर पार यूरोप तक फैलता जा रहा है. जिससे हालात विकट होते जा रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में पुलिस व नारकोटिक्स विभाग ने हर वर्ष चरस के काले सोने का कारोबार समाप्त करने के लिए भांग उखाड़ो अभियान चलाया, लेकिन इस अभियान के बावजूद चरस की बरामदगी ने पुलिस विभाग, नारकोटिक्स सेल व पंचायतीराज संस्थानों को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
नशा निवारण व भांग उखाड़ने का अभियान
इस अभियान को चलाने वाले प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. यदि पूरे क्षेत्र से भांग की पौधों को उखाड़ा गया तो चरस कैसे पैदा हो रही है? कुल्लू जिले की बात की जाए तो यहां इस वर्ष मई व अगस्त-सितंबर में दो बार भांग उखाड़ो अभियान चलाया गया. स्कूली छात्रों के माध्यम से रैली इत्यादि का आयोजन करके गांव-गांव तक नशा निवारण व भांग उखाड़ने का अभियान चलाया गया.
भागीदारी एक खानापूर्ति
पंचायतीराज संस्थानों की भी भांग उखाड़ो अभियान को सफल बनाने के लिए भागीदारी सुनिश्चित की गई. इसके बावजूद भांग की पौधे से क्विंटलों के हिसाब से चरस तैयार की गई जो पंचायतीराज संस्थानों व पुलिस और नारकोटिक्स विभाग की नाकामी को दर्शाता है. इस अभियान में सिर्फ कागजों का पेट भरने के लिए सहभागिता व भागीदारी को एक खानापूर्ति के रूप में लिया गया और आज उन्हीं क्षेत्रों से चरस की बड़ी खेपें पकड़ी गईं.
कुल्लू में 756 किलो चरस एक साल में जब्त
इस वर्ष कुल्लू जिला में 4227 बीघा जमीन से भांग के पौधे को नष्ट करने का दावा कागजों में किया गया. जबकि भांग सिर्फ सुर्खियों में रहने के लिए प्रमुख स्थानों से उखाड़ी गई. दुर्गम क्षेत्रों में इसे फलने-फूलने दिया गया. इस वर्ष 104 किलोग्राम चरस, 6 ग्राम कोकीन, 10.296 लीटर हशीश तेल, 125 किलोग्राम गांजा, लगभग 2 किलोग्राम हेरोइन, 2 किलोग्राम अफीम व 104 किलोग्राम चरस बरामद हुई है. यदि बीते आठ वर्षों की बात की जाए तो 2010 से नवंबर 2017 के मध्य पुलिस व नारकोटिक्स सेल ने अकेले कुल्लू जिले में ही 1,076 मामले दर्ज करके 1,110 लोगों से 756 किलोग्राम चरस बरामद की जिसकी औसत करीब एक क्विंटल प्रतिवर्ष बैठती है.
कारोबार के पीछे विदेशी ताकत
जाहिर है हिमाचल प्रदेश में नशे का कारोबार विदेशी ताकत के जरिये चलाया जा रहा है. माना जा रहा है कि मणिकर्ण घाटी में विदेशी इस काम को बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. यह घाटी विदेशियों की पनाहगाह बन गई है और यहां महीनों तक विदेशी डेरा जमाये रहते हैं. हर पूर्णिमा को यहां होने वाली रेव पार्टियां इस कारोबार को आगे बढ़ाने का साधन बन गई हैं. दिल्ली, मुंबई से लेकर विदेशों तक यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है.
मलाणा क्रीम खिंच लाती है विदेशियों को
मलाणा क्रीम नाम की चरस सस्ते और बढ़िया किस्म के गांजे की चाहत विदेशियों को बड़ी संख्या में यहां खींच रही है. गरीब स्थानीय लोगों के लिए यह फसल सर्वाधिक फायदे का सौदा साबित हो रही है. सरकार जितना इस पर रोक लगाने की कोशिश कर रही है, उतनी ही ज्यादा इनकी खेती बढ़ रही है. बताया जाता है कि मणिकर्ण घाटी में ही मलाणा क्रीम नामक चरस उगाई जाती है. यह चरस इतनी तेज गति से विकसित होती है कि इसका पेड़ 15 से 20 दिनों में ही 20 से 25 फुट तक बड़ा हो जाता है. इस प्रकार इस घाटी में बेतहाशा मलाणा क्रीम उगाई जाती है जिसकी किसी को खबर तक नहीं होती.
स्थानीय महिलाओं से विवाह कर बस जाते हैं विदेशी
नशे का कारोबार करते हुए बस गए कई विदेशी कुल्लू से पचास किलोमीटर दूर मलाना की वादियों में मलाना क्रीम बनती है. यह गांजे से बनाई गई उम्दा किस्म की हशीश होती है और इसकी पश्चिमी देशों में काफी मांग है. कुल्लू-मनाली में मादक पदार्थों के धंधे में विदेशियों की भागीदारी नई बात नहीं है. कुछ यहां से जाते ही नहीं. कुछ स्थानीय महिलाओं से विवाह कर यहीं बस जाते हैं.
पुलिस का दावा नहीं बक्शे जाएंगे तस्कर
कुल्लू के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक निश्चित सिंह नेगी ने कहा कि नशे के सौदागरों को किसी भी सूरत में बक्शा नहीं जाएगा. काले सोने के पर रोक लगाने के लिए भविष्य में भी भांग उखाड़ो जैसे अभियान चलते रहेंगे. उन्होंने माना कि कुल्लू में ज्यादा विदेशियों की वजह से चरस का कारोबार बढ़ रहा है. उन्होंने दावा किया कि पुलिस इस पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रही है.