कुल्लू. जिले से लगती लगघाटी सुविधाओं के अभाव और राजनीति की भेंट चढ़ी हुई है. यहां पर अनेकों पर्यटन स्थल हैं जिन्हें उभारा जा सकता है, लेकिन राजनीति का शिकार हुई घाटी में आज तक कोई भी पर्यटन स्थल विकसित नहीं हो पाया है. जिस कारण यहां के स्थानीय लोगों में भारी रोष है.
कुल्लू शहर से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर लगघाटी का यह क्षेत्र पर्यटकों को आकर्षित करता है. लगघाटी में प्रकृति का अनमोल खजाना है. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जितने भी कुल्लू से राजनेता हुए उन्होंने इस घाटी में पर्यटन को विकसीत करने हेतु कोई पहल ही नहीं की हैं. जिस कारण घाटी के पर्यटन स्थालों पर ग्रहण सा लगता जा रहा है. कुल्लू की लगघाटी में कई ऐसे क्षेत्र हैं जो पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है.
पर्यटन स्थल मठासौर नहीं हो पाया विकसीत
मुख्यालय से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर भल्याणी गांव में मठासौर नामक जगह है, जो कि चंबा के खंजियार को भी मात कर देती है. मठासौर के पूरे क्षेत्र में देवदार के घने पेड़ों के बीच में मठासौर यानी छोटा सरोवर की छटा देखते ही बनती है. चारों ओर देवदार के पेड़ इस स्थान को और भी मनमोहक बना देते हैं. लेकिन आज तक इस पर्यटन स्थल की सुध किसी नेता या विभाग ने नहीं ली.
कुपडी गांव है रमणीक पर्यटन स्थल
भल्याणी गांव के साथ लगता तारापुर क्षेत्र जो कि तारापुरगढ़ के नाम से जाना जाता है. ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों का तारापुर गढ़ से ही मंडी आना जाना रहता था. कुपड़ी गांव भी यहां पर अपने आप में ही एक रमणीय स्थल है. वहीं बुजुर्गों का कहना है कि इस स्थान पर कभी एक सोने का भव्य महल हुआ करता था. आज भी यह महल पत्थरों की शिला के रूप में विद्मान है. यहां के लोगों की आस्था है कि जो शुद्ध तनमन से देवी देवताओं में विश्वास रखता है उसे आज भी इस महल के साक्षात दर्शन होते हैं. यहां पर पर्यटन की दृष्टि से इसे उभारा जाए तो नए आयाम स्थापित हो सकते है.
काईसधार
कुल्लू से छह किलोमीटर काईसधार में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया विश्राम गृह और उसके चारों ओर देवदार के पेड़ों की सुदंरता का कोई जवाब नहीं है. अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह विश्राम गृह जर्जर हालत में है. जिससे सुधारने के लिए न तो किसी राजनेता और न ही विभाग ने पहल की है. इसकी सुंदरता में प्रतिदिन ग्रहण ही लगता जा रहा है.
डायनासोर झील है कुल्लू की पहचान
डायनासोर झील लगघाटी के सबसे दुर्गम और अंतिम गांव समालन से 20 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर स्थित है. यह झील पत्थरों के बीच में है. किसी को आज तक यह मालूम ही नहीं है कि आखिर यह पानी कहां से आता है. यह झील कुल्लू मंडी के जनपद के लोगों के लिए धर्मिक दृष्टि से आस्था का केंद्र है. 20 भादों के दिन कुल्लू मंडी कांगडा के हजारो लोग यहां पर स्नान करते हैं.
वहीं डीटीडीओ कुल्लू भाग चंद नेगी ने कहा कि पर्यटन की दृष्टि से सभी पर्यटन स्थलों को उभारा जाएगा. इसके लिए योजना तैयार की जाएगी. मेरे ध्यान में अभी तक इन जगहों के बारे में किसी ने नहीं बताया. जल्द ही इन क्षेत्रों को पर्यटन की दृष्टि से विकसीत किया जाएगा.