नई दिल्ली. भारत ने हाल ही में अमेरिकी Department of Homeland Security (DHS) द्वारा जारी नोटिस पर प्रतिक्रिया दी है, जिसमें H-1B वीज़ा प्रोग्राम में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। विभाग ने मौजूदा लॉटरी सिस्टम को हटाकर wage-based weighted selection process (वेतन आधारित चयन प्रक्रिया) लागू करने का सुझाव दिया है। इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा फीस को बढ़ाकर 100,000 डॉलर करने की घोषणा की थी।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि कुशल प्रतिभाओं की गतिशीलता (skilled talent mobility) बेहद अहम है और इस मुद्दे पर भारत उद्योग जगत समेत सभी संबंधित पक्षों के साथ लगातार जुड़ा रहेगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा:
“हमने अमेरिकी Department of Homeland Security का नोटिस देखा है जिसमें नए नियम लागू करने का प्रस्ताव है। मेरी समझ है कि उद्योग जगत समेत सभी हितधारकों के पास अपनी टिप्पणियाँ देने के लिए एक महीने का समय है। जैसा कि हमने पहले कहा था, skilled talent mobility और आपसी आदान-प्रदान ने अमेरिका और भारत में टेक्नोलॉजी विकास, इनोवेशन, आर्थिक वृद्धि, प्रतिस्पर्धा और संपत्ति सृजन में बड़ा योगदान दिया है। हम उम्मीद करते हैं कि इन कारकों को उचित महत्व दिया जाएगा और हम सभी संबंधित पक्षों के साथ जुड़े रहेंगे।”
जायसवाल ने यह भी बताया कि यह मुद्दा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 22 सितंबर को न्यूयॉर्क में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्क रूबियो के साथ बैठक के दौरान उठाया था।
उन्होंने कहा:
“H-1B के मामले में… मंत्रालय और हमारी वाशिंगटन डीसी स्थित एंबेसी लगातार अमेरिकी प्रशासन से संपर्क में हैं। इसके बाद अमेरिकी पक्ष ने स्पष्टीकरण और FAQs भी जारी किए कि नया नियम किस तरह लागू होगा। यह अभी भी एक विकसित हो रही स्थिति है और हम अलग-अलग स्तरों पर जुड़े हुए हैं।”
भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर?
19 सितंबर को राष्ट्रपति ट्रंप ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार 21 सितंबर से अमेरिकी कंपनियों को हर H-1B आवेदन के लिए 100,000 डॉलर फीस देनी होगी। पहले यह फीस कंपनी के आकार के आधार पर 2,000 से 5,000 डॉलर तक होती थी। इस कदम को अमेरिका में काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स, खासकर technology, engineering और healthcare सेक्टर के लोगों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
H-1B वीज़ा के बारे में
H-1B वीज़ा की शुरुआत 1990 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश के कार्यकाल में हुई थी। आज भारतीय टेक वर्कर्स इस वीज़ा का सबसे बड़ा लाभ उठाने वाला समूह हैं। पिछले साल कुल स्वीकृत H-1B वीज़ा में से 71 प्रतिशत भारतीयों को मिले थे, जबकि 11.7 प्रतिशत वीज़ा चीनी नागरिकों को दिए गए थे।