नई दिल्ली. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के नतीजे आ चुके हैं. दोनों ही जगहों पर भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी है. चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. तरह-तरह के हथकंडे अपनाए और बयानबाजी कर एक दूसरे पर हमले बोले.
लेकिन चुनाव में कुछ मतदाता ऐसे भी थे, जिन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र से किसी भी पार्टी का उम्मीदवार पसंद नहीं आया. या यूं कहें कि उन्हें राजनीति का वर्तमान स्वरूप नहीं भाया और उन्होंने किसी को भी वोट नहीं दिया.
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बड़ी बात यह नहीं कि उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आया. बल्कि बड़ी बात यह है कि उम्मीदवार पसंद न आने के बावजूद भी वह मतदान स्थल तक गए और उन्होंने बदलाव की आस में नोटा बटन का इस्तेमाल किया. एक समय ऐसा भी था कि अगर लोगों को उम्मीदवार न पसंद आए, और नोटा का विकल्प न होने की वजह से या तो वह वोट डालने ही नहीं जाते थे या फिर मजबूरी में किसी को वोट देकर चले आते थे.
गुजरात में साढ़े 5 लाख, तो हिमाचल में 34 हजार से ज्यादा वोट नोटा को
अगर गुजरात चुनाव की बात करें तो 551615 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया. यानि कुल वोट का 1.8% वोट नोटा को गया. जबकि हिमाचल प्रदेश में 34232 लोगों ने नोटा का बटन दबाया. जोकि कुल वोट का 0.9% है. यानि साफ है कि जिन लोगों को उम्मीदवार पसंद नहीं आए वह घर पर नहीं बैठे, बल्कि उन्होंने नोटा दबाकर अपने विरोध का इजहार भी किया. जोकि लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है.
लोगों की अपनी-अपनी राय
नोटा को लेकर अलग-अलग लोगों की अपनी-अपनी राय है. कुछ लोगों यह अनुमान लगा रहे हैं कि गुजरात में जो वोट नोटा को गया अगर वह वोट कांग्रेस को मिल जाता तो शायद गुजरात में कांग्रेस की वापसी हो सकती थी.
लेकिन इन सब लोगों की राय के अलावा यह सकारात्मक संकेत है कि लोग आगे आकर अपनी बात रख रहे हैं. जोकि बदलाव की निशानी है. राजनीतिक पार्टियों को भी नोटा के जरिए जनता द्वारा दिया जाने वाला यह संदेश समझना चाहिए.