नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ज्ञान भारतम पोर्टल का शुभारंभ किया। यह एक विशेष डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है, जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण, संरक्षण और आम जनता के लिए सुलभता सुनिश्चित करना है।
पोर्टल लॉन्च से पहले पीएम मोदी ने विज्ञान भवन में आयोजित ज्ञान भारतम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजित प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इस अवसर पर उन्हें संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी साथ दिया।
सम्मेलन का उद्देश्य: भारत की पांडुलिपि विरासत को वैश्विक मंच पर लाना
इस तीन दिवसीय सम्मेलन का विषय था – “Reclaiming India’s Knowledge Legacy through Manuscript Heritage”। इसका उद्देश्य भारत की विशाल और अद्वितीय पांडुलिपि विरासत को फिर से जीवित करना और इसे वैश्विक ज्ञान आदान-प्रदान में एक केंद्रीय तत्व के रूप में स्थापित करना है।
सम्मेलन में प्रमुख विद्वान, संरक्षण विशेषज्ञ, तकनीकी जानकार और नीति निर्माता भाग ले रहे हैं, ताकि भारत के प्राचीन ज्ञान की विविधता और समृद्धि को सुरक्षित किया जा सके।
पीएम मोदी ने भारत की पांडुलिपियों को बताया सभ्यतात्मक खजाना
इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि यह केवल सरकारी पहल नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्य और चेतना की घोषणा है। उन्होंने कहा कि भारत का ज्ञान परंपरागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित रहा है और इसमें निरंतर नवाचार होते रहे हैं।
“भारतीय ज्ञान परंपरा चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है – संरक्षण, नवाचार, जोड़ और अनुकूलन। वेद भारतीय संस्कृति की नींव माने जाते हैं और इन्हें बिना किसी गलती के संरक्षित किया गया। हम निरंतर आयुर्वेद, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष और धातुकर्म में नवाचार करते रहे। प्रत्येक पीढ़ी ने पुराने ज्ञान को संरक्षित करने के साथ कुछ नया भी जोड़ा। समय के अनुसार आत्म-विश्लेषण कर, हमने आवश्यक बदलावों को अपनाया। मध्यकाल में भी महान व्यक्तित्व उभरे जिन्होंने समाज में चेतना जगाई और हमारी विरासत की सुरक्षा की। भारत की सांस्कृतिक पहचान आधुनिक राष्ट्रों की अवधारणाओं से परे है।”
प्राचीन पांडुलिपियां और भाषा विविधता
पीएम मोदी ने कहा कि भारत में प्राचीन पांडुलिपियाँ लगभग 80 भाषाओं में मौजूद हैं, जो एकता में विविधता का संदेश देती हैं।
“प्राचीन पांडुलिपियाँ भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत का निरंतर प्रवाह दर्शाती हैं। ये लगभग 80 भाषाओं में मौजूद हैं – संस्कृत, प्राकृत, असमिया, बंगाली, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मराठी आदि। गिलगिट पांडुलिपि, उदाहरण के लिए, कश्मीर का असली इतिहास बताती है। ये सभी पांडुलिपियाँ मानवता की यात्रा, दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, अध्यात्म, कला, खगोलशास्त्र और वास्तुकला की प्रगति की छाप छोड़ती हैं।”
भारत का सभ्यतात्मक खजाना
पीएम मोदी ने बताया कि इन पांडुलिपियों में भारत का बड़ा सभ्यतात्मक खजाना निहित है।
“गणित से लेकर कंप्यूटर विज्ञान तक, आधुनिक ज्ञान की नींव भारत की खोजों पर आधारित है – जैसे शून्य की अवधारणा। हर देश अपने ऐतिहासिक खजानों को सभ्यता के प्रतीक के रूप में मानता है। भारत के पास अपनी विशाल पांडुलिपि संग्रह के कारण अतुलनीय सभ्यतात्मक खजाना है, जो राष्ट्र के लिए गर्व का स्रोत है।”
संस्कृति मंत्रालय ने साझा की प्रदर्शनी की जानकारी
संस्कृति मंत्रालय ने X (पूर्व ट्विटर) पर बताया कि पहली बार तीन दिवसीय #GyanBharatam International Conference 2025 में महत्वपूर्ण ज्ञान भंडार जैसे कौटिल्य का अर्थशास्त्र, रामायण (सुंदरकांड) और दुर्लभ पांडुलिपियाँ जैसे गिलगिट पांडुलिपि एक साथ प्रदर्शित की गई हैं। इस प्रदर्शनी ने भारत की अमूल्य ज्ञान परंपरा को देखने का अनूठा अवसर प्रदान किया।
ट्रैवल और डिजिटल टिप्स:
ज्ञान भारतम पोर्टल के माध्यम से अब शोधकर्ता और आम जनता आसानी से पांडुलिपियों तक डिजिटल पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।
पोर्टल: www.gyanbharatam.gov.in
भारतीय पांडुलिपियों की सुरक्षा और डिजिटलीकरण में योगदान देकर आप भी इस सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ा सकते हैं।