नई दिल्ली. बिहार की राजनीति में रविवार को बड़ा उलटफेर हुआ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने अपनी पार्टी ‘आप सबकी आवाज’ का प्रशांत किशोर (PK) की पार्टी जन सुराज में विलय कर दिया है। यह घटनाक्रम इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इस विलय से सियासी समीकरणों में कुछ हलचल जरूर देखी जा सकती है।
क्या PK + RCP = Game Changer बनेगा?
प्रशांत किशोर जो अब तक सिर्फ चुनाव रणनीतिकार के तौर पर जाने जाते थे, अब खुद राजनीतिक खिलाड़ी बन चुके हैं। वहीं, RCP सिंह जो कभी नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाते थे। अब उनके धुर विरोधी बन चुके हैं। ऐसे में दोनों नेताओं का एक मंच पर आना एक स्पष्ट संकेत देता है कि बिहार में तीसरे मोर्चे की भूमिका मजबूत की जा रही है।
क्या यह विलय NDA और INDIA गठबंधन के बीच की टक्कर को त्रिकोणीय बना सकता है?
कौन हैं RCP Singh और क्यों है उनकी अहमियत?
पूर्व IAS अधिकारी (UP कैडर)scनीतीश कुमार के प्रधान सचिव और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे
भारत सरकार में इस्पात मंत्री
कुर्मी जाति से आते हैं — जो बिहार की ओबीसी राजनीति में प्रभावशाली वर्ग है
नीतीश कुमार से मतभेद के बाद RCP सिंह ने खुद की पार्टी बनाई थी, लेकिन जनाधार सीमित रहा। अब जन सुराज में शामिल होकर वो फिर से प्रभावी राजनीतिक मंच की तलाश में हैं।
2025 Bihar Assembly Elections: क्या असर पड़ेगा?
243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में अब तक लड़ाई NDA बनाम RJD-कांग्रेस गठबंधन तक सीमित रही है। लेकिन जन सुराज के माध्यम से PK और RCP जैसे नामों की एंट्री से Youth और educated voters को टारगेट किया जा सकता है,कुर्मी, कोइरी और गैर-यादव OBC वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश होगी।
Clean politics और नई सोच का दावा कर anti-incumbency वोट बटोरने की रणनीति
हालांकि, बिहार में जातीय समीकरण और संगठनात्मक ताकत ही चुनावी जीत का बड़ा फैक्टर होता है — जो फिलहाल NDA और RJD खेमे के पास ही ज्यादा मजबूत है।
प्रशांत किशोर की रणनीति: मुद्दे बनाम परिवारवाद
प्रशांत किशोर लगातार बिहार की बदहाली, पलायन, शिक्षा और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जन सुराज यात्रा के जरिए जनभावनाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनका सीधा हमला लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों पर रहा है। इन नेताओं ने सिर्फ अपने परिवारों का विकास किया, बिहार को नहीं। अब देखना है कि जनता इस मुद्दावादी राजनीति को कितनी गंभीरता से लेती है।