हमीरपुर(भोरंज). हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है लेकिन हम हिमाचल को मेलों-त्योहारों का प्रदेश भी कहें तो गलत नहीं होगा क्योंकि हिमाचल में लगातार त्योहार मेले चलते आते रहते हैं. अब बारी है लदरौर के सायर मेला का जो हर साल सितंबर माह की अश्विन संक्रांति के दिन मनाया जाता है. इस बार यह तीन दिवसीय मेला 16 से 18 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है. सायर मेला मक्की पकने की खुशी में मनाई जाती है. किसान इस दिन मक्की की फसल को काटना शुभ मानते हैं. सायर त्योहार काला महीनाड खत्म होने के दूसरे दिन से शुरू होता है.
सायर मेला हमीरपुर और बिलासपुर जिला के संगम स्थल पर लगता है. भोरंज की झरलोग पंचायत के लदरौर कलां में मान्यता है कि करीब चार सौ साल पहले सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के छोटो भाई लखमीर दास हिमाचल प्रदेश आए थे. उन्होंने यहां के गांवों में घूमकर सतनाम धर्म का प्रचार किया था.
संत लखमीर दास किसी के घर नहीं ठहरते थे. बाबा गांव में किसी पेड़ के नीचे आसन लगाते थे और वहां सत्संग के साथ लंगर का बंदोबस्त भी करते थे. कहा जाता है कि एक दिन बाबा लखमीर दास लदरौर कस्बे में शिष्यों के साथ आए. वह घोड़े पर लदरौर कलां के पास से ही निकल रहे थे तो अचानक बरगद पेड़ की टहनी से उनकी पगड़ी टकराकर गिर गई. इसे अपमान समझकर उन्होने बरगद के पेड़ को श्राप दे दिया.
गांव के लोगों ने देखा के कुछ दिनों के बाद बरगद का पेड़ सूख गया और टहनियां गिरने लगी. जब दोबारा बाबा लखमीर दास इसी क्षेत्र में यात्रा कर रहे थे तो ग्रामीणों ने पेड़ के सूखने की बात उनको बताई तथा बरगद के वृक्ष को दोबारा हरा-भरा करने की प्रार्थना की. इस पर बाबा लखमीर दास ने श्राप को वापस ले लिया. कुछ दिनों के बाद वृक्ष फिर हरा-भरा होने लगा. इस खुशी को लेकर ग्रामीणों ने वहां एक मंदिर का निर्माण कर डाला. आज भी यह सालों पुराना बरगद का वृक्ष हरा-भरा है और क्षेत्र का सबसे पुराना वृक्ष है.
मंदिर को सजाने के लिए बाबा लखमीर दास समिति का गठन किया गया है. कमेटी हर साल दो दिनों का भंडारा भी करवाती है. मेला कमेटी के अध्यक्ष बंशी राम ने कहा कि मेले में पुख्ता प्रबंध किए गए हैं. दुकानदारों की सुविधा के लिए पंचायत ने बिजली व पानी की व्यवस्था करने का निर्णय लिया है. दुकानदारों को दुकानों के लिए साफ जगह दी गई है.