नई दिल्ली. शंकर सिंह वाघेला का नाम उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं जो कांग्रेस और भाजपा दोनो ही पार्टियों में अहम पदों पर रहे हैं. अपने राजनीतिक जीवन में दो बार अलग पार्टी भी बना चुके हैं. एक समय था जब गुजरात में नरेंद्र मोदी और केशुभाई पटेल से भी ज्यादा जनसमर्थन इन्हें मिला हुआ था. गुजरात भाजपा का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पहली बार पार्टी की झोली में पूर्ण बहुमत डाल दिया था. ऐसे ही कई करिश्मे और अपनी अलग राजनीति के लिए मशहूर वाघेला की कहानी हम इस व्यक्ति विशेष के अंक में लेकर आए हैं.
महात्मा गांधी के बाद शंकर सिंह वाघेला भी ‘बापू’
‘बापू’ के नाम से जनता में पैठ जमाने वाले शंकर सिंह वाघेला का जन्म 1940 में गुजरात के गांधी नगर में हुआ था. शंकर सिंह वाघेला की राजनीति की शुरुआत आरएसएस के प्रचारक के तौर पर होती है. वाघेला ने भी इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा बुलंद किया था और जेल भी गए. जनसंघ से जुड़ने के बाद उनकी राजनीति ने रफ्तार पकड़ी. उसके बाद भाजपा को गुजरात में खड़ा करने में उनका अहम योगदान रहा. उस दौरान वाघेला और नरेंद्र मोदी मोटर साइकिल पर बैठकर गांव-गांव घूमा करते थे. मगर वाघेला की महत्वाकांक्षा ने उन्हें भाजपा में बागी बना दिया.
जब वाघेला ने लगाई भाजपा की नैया पार
बात उस समय कि है जब भाजपा को पहली बार किसी भी राज्य में बहुमत मिला था. गुजरात ही वह पहला राज्य था जहां पार्टी दमदार तरीके से जीती थी. इस जीत के पीछे थे गुजरात भाजपा के अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के अलावा दूसरे नेता केशुभाई पटेल थे और तीसरी अहम भूमिका थी नरेंद्र मोदी की. जिनकी कड़ी मेहनत ने भाजपा को 182 से 121 सीटों पर जीत दिला दी. अब पेंच फंसा की मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए. इस पर भाजपा हाईकमान ने केशुभाई पटेल को ही मुख्यमंत्री पद के लिए फिट माना. हाईकमान ने सोचा कि किसी पटेल को कमान दी जाए तो पटेलों का समर्थन मिलता रहेगा.
विधायकों को लेकर खजुराहो उड़े वाघेला
शंकर सिंह वाघेला का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट गया था लेकिन जिसे मंजिल चाहिए वह साम-दाम, दंड-भेद सब आजमाते हैं. छह महीने बाद केशुभाई पटेल विदेश यात्रा पर गए, उसी समय वाघेला ने राजनीतिक बिसात बिछाते हुए लगभग 50 विधायकों को चार्टर प्लेन से खजुराहो के पांच सितारा होटल ले गए. उनका मकसद था सरकार का तख्ता पलट कर देना जिसमें वह कामयाब भी हुए.
जब वाघेला ने कहा मोदी को निकालो गुजरात से
वाघेला को मनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी और भैरो सिंह शेखावत गुजरात पहुंचे. उसके बाद वाघेला ने अपनी मांग रखी कि सबसे पहले तो नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर का रास्ता दिखाया जाए. इसके साथ ही केशुभाई पटेल की गद्दी छीन ली जाए. नरेंद्र मोदी उस वक्त गुजरात में इतने बड़े नेता नहीं थे, इसलिए नरेंद्र मोदी को गुजरात से चलता किया
गया. वहीं केशुभाई पटेल को हटाकर सुरेश मेहता को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनवा दिया गया.
न भाजपा के न कांग्रेस के वाघेला
वाघेला की भूख अभी शांत नहीं हुई थी, कुर्सी अभी मिली नहीं थी. इसी को देखते हुए उन्होंने एक साल के भीतर ही उन्होंने भाजपा छोड़ दिया और एक नई पार्टी बनाई ‘राष्ट्रीय जनता पार्टी’. कांग्रेस से सांठ-गांठ कर गुजरात के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए. उसके एक साल बाद ही कांग्रेस से मतभेद शुरू हो गया. उन्होंने अपने पुराने फॉर्मूले के तहत अपने ही विश्वासपात्र दिलीप पारिख को गुजरात का मुख्यमंत्री बनवा दिया.
भ्रष्टाचार की आंच वाघेला पर भी
1998 के विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के बीच जबरदस्त मुकाबला था. केशुभाई पटेल के नेतृत्व में भाजपा दोबारा सत्ता में आई. वाघेला की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को चार सीटें भी नहीं मिल पाई थी. अपनी पार्टी का कोई भविष्य न देख कर वाघेला ने दोबारा कांग्रेस पार्टी में जा मिले. उन के पीछे सीबीआई को लगाया गया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री रहते मनी लांड्रिंग और भ्रष्टाचार किया है.
‘जन विकल्प’ का क्या होगा
कांग्रेस ने वाघेला को लोकसभा का टिकट दिया. वह दो बार केंद्रीय मंत्री बनें और उन्हें गुजरात कांग्रेस का सबसे बड़ा पद दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि वाघेला क्योंकि संघ से ताल्लुक रखते हैं इसलिए मुस्लिम समाज का समर्थन नहीं मिल पा रहा था. उन्होंने अब कांग्रेस को छोड़ अपनी अलग नई पार्टी बना ली है, जिसका नाम रखा गया है ‘जन विकल्प’. 2017 के विधानसभा चुनाव में वह किसके लिए मुसीबत बनेंगे, किसके लिए फायदे का सौदा साबित होंगे यह तो वक्त बताएगा. गुजरात विश्वविद्यालय से मास्टर्स ऑफ आर्ट की डिग्री लेने वाले वाघेला के तीन बेटे हैं जो पिता की छत्रछाया में राजनीति सीख रहे हैं.