नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में हालिया बदलाव को लेकर उत्पन्न विवाद पर सुओ मोटो (स्वतः) संज्ञान लिया है। अवकाशकालीन पीठ, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह शामिल हैं, इस मामले की सुनवाई कल करेगी। अदालत का यह हस्तक्षेप अरावली की नई परिभाषा के खिलाफ हो रहे जनआंदोलनों और कड़े विरोध के बाद सामने आया है।
स्वीकृत परिभाषा के अनुसार, अरावली पहाड़ियों में निर्दिष्ट जिलों की वे सभी भू-आकृतियां शामिल हैं, जिनकी ऊंचाई स्थानीय भू-स्तर से कम से कम 100 मीटर अधिक हो, साथ ही उनसे जुड़ी ढलानें और संबंधित भूमि संरचनाएं भी इसमें आती हैं। पर्यावरण संगठनों और नागरिक समूहों ने आशंका जताई है कि परिभाषा में ढील दिए जाने से क्षेत्र में खनन और निर्माण गतिविधियों को वैधता मिल सकती है, जिससे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी
यह विवाद दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा को लेकर लंबे समय से चली आ रही असंगतियों से जुड़ा है, जिनके कारण पहले भी नियामकीय खामियां सामने आईं और अवैध खनन को बढ़ावा मिला। इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी और नवंबर में दिए गए फैसले में समिति द्वारा सुझाई गई ऑपरेशनल डेफिनिशन को खनन नियमन के लिए स्वीकार किया था।
सस्टेनेबल माइनिंग के लिए मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जाए
अदालत ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया था कि अरावली जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी नए खनन की अनुमति देने से पहले सस्टेनेबल माइनिंग के लिए मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जाए। गौरतलब है कि अरावली पहाड़ियां मरुस्थलीकरण रोकने, भूजल संरक्षण और उत्तर-पश्चिम भारत के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
