शिमला. चुनावी साल में हिमाचल प्रदेश सरकार व संगठन के बीच खींचतान तो चली आ रही थी कि अब भाजपा के भीतर भी वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है. जिस तरह से बिलासपुर में एम्स को लेकर अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा के बीच तनातनी देखी गई, उसे देखकर लगता है कि यह जंग प्रदेश में भाजपा के मुखिया की कुर्सी को लेकर हो रही है.
कांग्रेस में वीरभद्र बनाम सुक्खू की जंग तो जगजाहिर थी ही कि अब भाजपा में भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर दो धड़ों में ठन सकती है. ऐसे में जब मोदी के मंत्रिमंडल में हिमाचल से कोई नया चेहरा शामिल नहीं हुआ है, अब भाजपा में मुख्यमंत्री प्रत्याशी को लेकर कलह मच सकती है.
अनुराग को केंद्र में मंत्री बनाये जाने की चर्चा पर उनका सीधे खुद को मोदी कैबिनेट से अलग करना और कहना कि वह मंत्री नहीं बनना चाहते इशारा करता है कि हिमाचल की राजनीति को अधिक तरजीह दे रहे हैं. अटकलें यह भी लगाई जा रही थी कि यदि अनुराग को लेकर केंद्र में ऐसा कोई फैसला होता तो धूमल खेमा कमजोर पड़ सकता था.
अब जब मोदी कैबिनेट में नए मंत्रियों की शपथ भी हो चुकी है, ऐसे में यह साफ है कि नेता प्रतिपक्ष धूमल और सांसद अनुराग ठाकुर किसी भी सूरत में हिमाचल के किले को छोड़ना नहीं चाहते.
पहली बार सियासत में ऐसा देखा गया कि कोई सांसद खुद कह रहा हो कि उसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं बनना है. इसके राजनीतिक गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे है.बीजेपी में धूमल बनाम जेपी नड्डा का नया ऐपिसोड लंबे समय से जनता के बीच चल रहा है. प्रदेश में कई एजेंसियां सर्वे कर यह बता चुकी हैं कि इस बार मोदी के बेहद करीबी जेपी नड्डा हिमाचलवासियों की पहली पसन्द हैं. केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद हिमाचल में उनकी सक्रियता इशारा कर रही है कि उन्हें प्रदेश की चिंता ज्यादा है. आये दिन जेपी नड्डा के हिमाचल दौरे उनके समर्थकों व शुभ चिंतकों में नई ऊर्जा और प्राण फूंक कर राजनीति की नई जमीन तैयार करने का काम कर रही है.
धूमल खेमा वर्चस्व की जंग में अपने पांव जनता के बीच जमा चुका है. यूँ भी दो मर्तबा हिमाचल के मुख्यमंत्री रहते हुए धूमल जनता में अच्छी-खासी पैठ रखते हैं और आम कार्यकर्ता उन्हें अपना नेता मानते हैं.
सर्वविदित है कि भाजपा और कांग्रेस में आगामी चुनाव में कौन सेनानायक होगा, यह फैसला आलाकमान ही करेगा. लेकिन जंग अभी जारी है. अंजाम क्या होगा आवाम को इसका बेसब्री से इंतजार है.